/ Sep 12, 2025
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NEPAL POLITICAL CRISIS: पड़ोसी देश नेपाल इस समय अपनी सबसे बड़ी राजनीतिक अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है। जनरेशन-जेड (Gen-Z) के नेतृत्व में हुए व्यापक विरोध प्रदर्शनों ने देश को एक ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है, जहाँ भविष्य अनिश्चित नजर आ रहा है। पिछले कई दिनों से जारी हिंसक झड़पों और दबाव के बीच प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने 9 सितंबर को अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। लेकिन उनके इस्तीफे से समाधान के बजाय संकट और गहरा गया है, क्योंकि अब देश का नेतृत्व कौन करेगा, इस पर सहमति नहीं बन पा रही है।
Gen-Z कई गुटों में बंट चुका है। उनकी मुख्य मांगों में संसद को भंग करना, 6 महीने के भीतर नए चुनाव कराना, संविधान में प्रधानमंत्री के लिए कार्यकाल सीमा जैसे संशोधन करना और भ्रष्टाचार के खिलाफ एक स्वतंत्र जांच आयोग बनाना शामिल है। हालांकि, अंतरिम प्रधानमंत्री के नाम पर युवाओं में मतभेद पैदा हो गया है। ज्यादातर युवा नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश रह चुकीं सुशीला कार्की को उनकी भ्रष्टाचार विरोधी छवि के कारण समर्थन दे रहे हैं। वहीं, कुछ गुट काठमांडू के युवा मेयर बलेंद्र शाह, बिजली संकट को हल करने वाले कुलमान घिसिंग और धरान के मेयर हरका सम्पांग जैसे नामों का भी समर्थन कर रहे हैं।
इस गतिरोध को तोड़ने के लिए राष्ट्रपति पौडेल, सेना प्रमुख जनरल अशोक राज सिग्देल और Gen-Z के प्रतिनिधियों के बीच भद्रकाली स्थित सेना मुख्यालय में लगातार बातचीत चल रही है। संकट प्रबंधन टीम की एक अहम बैठक 12 सितंबर की सुबह बुलाई गई है। देश के सभी राजनीतिक दल युवाओं की मांगों से सैद्धांतिक रूप से सहमत तो हैं, लेकिन वे संसद भंग करने की मांग पर अड़े हुए हैं। इस बीच, युवाओं ने सेना प्रमुख को चेतावनी दी है कि यदि आधी रात तक अंतरिम प्रधानमंत्री की नियुक्ति नहीं हुई, तो वे सीधे राष्ट्रपति पर हमला करेंगे। इस धमकी ने तनाव को और बढ़ा दिया है।
इस पूरे संकट की जड़ 4 सितंबर, 2025 को सरकार द्वारा लिए गए एक फैसले से जुड़ी है। सरकार ने फेक न्यूज, साइबर क्राइम और सामाजिक सद्भाव बिगड़ने का हवाला देते हुए फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और व्हाट्सएप समेत 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंध लगा दिया। सरकार ने इसे देशहित में उठाया गया कदम बताया, लेकिन देश के युवाओं ने इसे अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सीधा हमला माना। इसी के विरोध में 8 सितंबर को काठमांडू में एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन का आयोजन किया गया। लेकिन यह प्रदर्शन उस वक्त हिंसक हो गया, जब पुलिस की कार्रवाई में स्कूली बच्चों सहित 30 से ज्यादा युवाओं की मौत हो गई।
पुलिसिया कार्रवाई से गुस्साई भीड़ ने 9 सितंबर को काठमांडू में जमकर उत्पात मचाया। प्रदर्शनकारियों ने संसद भवन, सुप्रीम कोर्ट, सरकारी कार्यालयों के मुख्य केंद्र सिंग्हा दुरबार और कई मंत्रियों के घरों में आग लगा दी। नेपाली कांग्रेस और सीपीएन-यूएमएल जैसे प्रमुख राजनीतिक दलों के मुख्यालयों को भी निशाना बनाया गया। अब तक इन झड़पों में मरने वालों की संख्या 34 हो चुकी है, जबकि 1,300 से अधिक लोग घायल हैं।(NEPAL POLITICAL CRISIS)
हालात इतने बिगड़ गए थे कि काठमांडू के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे को भी 24 घंटों के लिए बंद करना पड़ा। चौतरफा दबाव के बीच प्रधानमंत्री ओली ने इस्तीफा देते हुए कहा, “देश की प्रतिकूल स्थिति को देखते हुए, मैं आज से इस्तीफा दे रहा हूं ताकि एक संवैधानिक समाधान संभव हो सके।” राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया, लेकिन तब से काठमांडू और अन्य प्रमुख शहरों में सेना ने कर्फ्यू लगा रखा है।(NEPAL POLITICAL CRISIS)
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