/ Apr 18, 2025
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DONALD TRUMP HARVARD CONTROVERSY: अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के बीच विवाद अब खुलकर सामने आ गया है। ट्रम्प प्रशासन ने यूनिवर्सिटी की 2.7 अरब डॉलर की संघीय फंडिंग रोक दी है। इसके जवाब में हार्वर्ड ने इस फैसले को संविधान के खिलाफ और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताया है। यह विवाद खासतौर पर यूनिवर्सिटी की प्रशासनिक नीतियों, यहूदी विरोधी घटनाओं पर प्रतिक्रिया, डायवर्सिटी, इक्विटी और इन्क्लूजन (DEI) कार्यक्रमों और मेरिट के आधार पर छात्र भर्ती जैसे मुद्दों पर केंद्रित है।
3 अप्रैल 2025 को ट्रम्प प्रशासन ने हार्वर्ड को एक पत्र भेजकर उसकी नीतियों में बदलाव की मांग की थी। प्रशासन का दावा है कि यह कदम कैंपस में यहूदी विरोधी गतिविधियों को रोकने और तथाकथित ‘वोक’ संस्कृति खत्म करने के लिए ज़रूरी है। ट्रम्प ने कहा कि जो संस्थान अरबों डॉलर की सरकारी मदद लेते हैं, उनकी जवाबदेही भी होनी चाहिए। हार्वर्ड ने इन मांगों को मानने से इनकार कर दिया है। यूनिवर्सिटी के अध्यक्ष एलन गार्बर ने 14 अप्रैल को एक पत्र में कहा कि प्रशासन की ये मांगें अमेरिकी संविधान के पहले संशोधन और टाइटल VI कानून का उल्लंघन हैं, जो किसी भी व्यक्ति को नस्ल, रंग या मूल के आधार पर भेदभाव से सुरक्षा देता है।
इसके बाद अमेरिकी शिक्षा विभाग ने हार्वर्ड को मिलने वाली 2.2 अरब डॉलर की अनुदान राशि और 60 मिलियन डॉलर के सरकारी अनुबंधों पर रोक लगाने की घोषणा कर दी। यह फैसला ट्रम्प प्रशासन द्वारा गठित टास्क फोर्स की सिफारिश पर लिया गया, जो यहूदी विरोधी घटनाओं की निगरानी कर रही है। हार्वर्ड ने इस फैसले के खिलाफ सख्त प्रतिक्रिया दी है। 14 अप्रैल को एक एक्स पोस्ट में यूनिवर्सिटी ने साफ कहा कि वह अपनी आज़ादी और संवैधानिक अधिकारों को नहीं छोड़ेगी।
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी और डोनाल्ड ट्रंप के बीच बढ़ते विवाद के बीच अब कानूनी जंग शुरू हो गई है। यूनिवर्सिटी के दो प्रोफेसर समूहों ने मैसाचुसेट्स की फेडरल डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में ट्रंप प्रशासन के खिलाफ मुकदमा दायर किया है। प्रोफेसरों का आरोप है कि ट्रंप का यह कदम अमेरिकी संविधान के पहले संशोधन यानी फर्स्ट अमेंडमेंट का सीधा उल्लंघन है, जो हर नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है। प्रोफेसरों ने कोर्ट से अपील की है कि ट्रंप प्रशासन द्वारा हार्वर्ड की अरबों डॉलर की फंडिंग रोकने के फैसले को अवैध घोषित किया जाए।
16 अप्रैल को ट्रम्प ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘ट्रुथ सोशल’ पर हार्वर्ड को ‘मजाक’ बताते हुए कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा कि हार्वर्ड जैसे संस्थान न्यूयॉर्क और शिकागो के ‘नाकाम’ मेयरों बिल डी ब्लासियो और लॉरी लाइटफुट को पढ़ाने के लिए भारी वेतन देते हैं, जो शहर प्रबंधन जैसे विषय सिखाते हैं। ट्रम्प ने कहा कि हार्वर्ड अब अमेरिका के शीर्ष विश्वविद्यालयों की सूची में शामिल होने लायक नहीं रहा और वहां सिर्फ ‘नफरत और मूर्खता’ सिखाई जाती है।
ट्रम्प ने 17 अप्रैल को हार्वर्ड को एक और बयान दिया कि अगर यूनिवर्सिटी प्रशासन उनकी शर्तें नहीं मानता, तो हार्वर्ड को दी जाने वाली टैक्स छूट भी समाप्त कर दी जाएगी। इसके अलावा, ट्रम्प प्रशासन ने 30 अप्रैल तक हार्वर्ड से विदेशी छात्रों का पूरा डेटा मांगा है, जिससे यह आशंका और बढ़ गई है कि विदेशी छात्रों के दाखिले पर सख्ती बढ़ सकती है। यह खबर खासतौर पर भारतीय छात्रों के लिए चिंता का कारण बन गई है, जो बड़ी संख्या में हार्वर्ड में पढ़ते हैं। ट्रम्प प्रशासन की सख्त इमिग्रेशन नीतियां और विदेशी छात्रों का डेटा मांगने का कदम वीजा और दाखिले से जुड़ी अनिश्चितता को और बढ़ा सकता है।
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