/ Jan 04, 2025
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DIGITAL ARREST FRAUD: आजकल साइबर अपराध तेजी से बढ़ रहे हैं, और इसके परिणामस्वरूप लोगों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। खासकर इंटरनेट का उपयोग करने वाले लोग इस खतरे से ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। भारत में लगभग 90 करोड़ से अधिक इंटरनेट यूजर्स हैं, और इस बढ़ती संख्या के साथ ही साइबर अपराध के मामले भी बढ़ गए हैं। 2023 में ऐसी साइबर धोखाधड़ी की 11 लाख घटनाएं सामने आईं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में साइबर अपराधों में तेजी से वृद्धि हुई है।
2017 में जहां 3,466 मामले दर्ज किए गए थे, वहीं 2022 में यह आंकड़ा बढ़कर 17,470 तक पहुंच गया। सके अलावा, 2023 में वित्तीय साइबर धोखाधड़ी की 1,12,82,65 शिकायतें आईं। इस बढ़ते हुए साइबर अपराध के बीच एक नया शब्द सुर्खियों में आ रहा है, जो है “डिजिटल अरेस्ट”। कई लोग इस नए प्रकार के साइबर ठगी का शिकार हो रहे हैं और उन्हें लाखों या करोड़ों रुपये का नुकसान हो रहा है। इस लेख में हम जानेंगे कि डिजिटल अरेस्ट क्या है, कैसे साइबर ठगी के मामले बढ़ रहे हैं, और इससे बचने के उपाय क्या हैं।
DIGITAL ARREST FRAUD एक प्रकार की साइबर ठगी है, जिसका उद्देश्य लोगों को शिकार बनाकर उनसे पैसे और पर्सनल जानकारी चुराना होता है। इस प्रक्रिया में स्कैमर्स फोन कॉल, व्हाट्सएप, या ईमेल के माध्यम से पीड़ितों को यह झूठा दावा करते हैं कि उनका डिजिटल अरेस्ट किया जाएगा। स्कैमर्स इस तरह से लोगों में भय और घबराहट का माहौल पैदा करते हैं, जिससे पीड़ित डर के कारण अपनी महत्वपूर्ण जानकारी और पैसे देने के लिए मजबूर हो जाते हैं। हालांकि, यह समझना बहुत जरूरी है कि कानून में इस प्रकार का कोई शब्द “डिजिटल अरेस्ट” नहीं है।
DIGITAL ARREST FRAUD केवल एक साइबर अपराधियों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली धोखाधड़ी तरीका है। इसका उद्देश्य लोगों को यह विश्वास दिलाना होता है कि वे किसी अपराध में शामिल हैं और उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी। इसके बाद, पीड़ित से बड़ी रकम ठगने के लिए उसे वीडियो कॉल या फोन कॉल के जरिए घंटों तक परेशान किया जाता है। इस दौरान स्कैमर्स उसे यह विश्वास दिलाते हैं कि अगर वह कार्रवाई से बचना चाहता है, तो उसे पैसे देने होंगे। इस प्रक्रिया के दौरान पीड़ित अपनी निजी जानकारी भी साझा कर देता है, जैसे बैंक अकाउंट नंबर, पासवर्ड, क्रेडिट कार्ड डिटेल्स, और अन्य संवेदनशील जानकारी।
DIGITAL ARREST FRAUD की प्रक्रिया की शुरुआत एक साधारण संदेश से होती है, जो व्हाट्सएप, ईमेल, या फोन कॉल के जरिए भेजा जाता है। इस संदेश में दावा किया जाता है कि पीड़ित व्यक्ति किसी आपराधिक गतिविधि में शामिल है। इसके बाद, पीड़ित को यह कहा जाता है कि उसे वीडियो कॉल पर बने रहना होगा ताकि उसकी जांच हो सके। इन कॉल्स में स्कैमर्स खुद को पुलिस, साइबर सेल, इनकम टैक्स विभाग या सीबीआई के अधिकारी के रूप में पेश करते हैं। वह पीड़ित को गलत आरोपों में फंसाकर उसे डराते हैं और कानूनी कार्रवाई की धमकी देते हैं।
इसके बाद, जब पीड़ित घबराता है और डर के कारण अपनी निजी जानकारी देने के लिए तैयार हो जाता है, तो स्कैमर्स उससे पैसे भी वसूल कर लेते हैं। इस प्रकार की ठगी में पीड़ित को यह महसूस कराया जाता है कि वह स्कैमर्स है और उसे गिरफ्तार किया जाएगा। इस दौरान पीड़ित की जानकारी और पैसे दोनों ही चुराए जाते हैं। यह तरीका ब्लैकमेलिंग से भी ज्यादा खतरनाक है, क्योंकि इसमें केवल पैसे ही नहीं, बल्कि संवेदनशील जानकारी भी ली जाती है। स्कैमर्स इस जानकारी का गलत इस्तेमाल कर सकते हैं और पीड़ित के अकाउंट से पैसे निकाल सकते हैं, साथ ही उसकी पहचान को भी धोखाधड़ी के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं।
DIGITAL ARREST FRAUD करने के कई तरीके होते हैं, जिनमें से एक है स्कैमर्स किसी कूरियर का नाम लेकर पीड़ित को यह बताने की कोशिश करते हैं कि उनके पास एक कूरियर आया है, जिसमें गलत सामान है जैसे कि ड्रग्स। वह कहते हैं कि यदि वह इसे वापस नहीं भेजेंगे तो वह कानूनी मुसीबत में फंस सकते हैं। इसके अलावा, स्कैमर्स पीड़ित को यह बताते हैं कि उनके बैंक अकाउंट से कुछ संदिग्ध ट्रांजैक्शन हुए हैं, जो मनी लॉन्ड्रिंग या अन्य गंभीर अपराधों से जुड़े हो सकते हैं। कुछ मामलों में ये भी देखा गया है कि यदि पीड़ित के खाते में पैसे नहीं होते, तो स्कैमर्स उन्हें लोन दिलवाने का लालच देते हैं।
इसके बाद वह पीड़ित को लोन एप्लिकेशन डाउनलोड करने के लिए कहते हैं, जो बाद में पीड़ित की पर्सनल जानकारी चुरा सकते हैं। DIGITAL ARREST FRAUD के दौरान ठग पीड़ित को मानसिक और भावनात्मक रूप से परेशान करते हैं, ताकि वह जल्दी से अपनी निजी जानकारी दे सके। इसके बाद उसे कुछ दिनों तक डिजिटल अरेस्ट में रखने का दबाव डालते हैं, जिससे वह घबराकर और भी अधिक जानकारी और पैसे देने के लिए तैयार हो जाता है। इसके अलावा आजकल स्कैमर्स किसी मेसेज या कॉल में दावा करते हैं कि पीड़ित के परिवार का कोई सदस्य अपराध में शामिल है और उसे तुरंत सहायता की जरूरत है।
स्कैमर्स लोगों को इमोशनली दबाव में डालकर उनसे पैसे वसूल लेते हैं। स्कैमर्स इस ठगी में किसी पुलिस अधिकारी या वकील के रूप में सामने आते हैं और दावा करते हैं कि परिवार का सदस्य कानूनी संकट में फंसा है। स्कैमर्स इस दौरान दबाव डालते हैं कि यदि जल्दी पैसे नहीं भेजे गए तो परिवार का सदस्य जेल जा सकता है। पैसे भेजने के बाद स्कैमर्स यह बताते हैं कि मामला सुलझ गया, लेकिन पीड़ित को बाद में सच्चाई का पता चलता है कि वे धोखा खा चुके हैं।
भारत सरकार ने साइबर अपराधों को रोकने के लिए एक विशेष पोर्टल cybercrime.gov.in लॉन्च किया है, जहां पर आप अपनी शिकायत दर्ज कर सकते हैं। इसके अलावा, पुलिस ने हेल्पलाइन नंबर 1930 जारी किया है, जिस पर आप साइबर अपराध की शिकायत कर सकते हैं। यदि आप डिजिटल अरेस्ट का शिकार हुए हैं, तो आप सीधे 112 पर कॉल करके भी शिकायत दर्ज कर सकते हैं। विभिन्न बैंकों ने भी इन घटनाओं से संबंधित शिकायतों के लिए हेल्पलाइन नंबर जारी किए हैं। इस प्रकार की घटनाओं के प्रति जागरूक रहकर और सही कदम उठाकर हम साइबर अपराध से बच सकते हैं।
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