25 देशों का कचरा क्यों आ रहा है भारत?

0
691

 

देहरादून ( मनीषा रावत )  : क्यों भारत दुनिया के 25 देशों से कचरा खरीद रहा है। क्या भारत के पास खुद का कचरा कम पड़ रहा है जो वो अन्य देशों से कचरा खरीद रहा है और अहम बात ये है कि इस कचरे से आखिरकार भारत सरकार क्या कर रही है।  आज आपको बताएंगे कि कैसे कचरे से हमारे देश में कुछ ऐसी चीजें बन रही हैं जो हम रोज इस्तेमाल कर रहे हैं।आपको बता दें कि हर साल भारत अन्य देशों से करीबन 4.3 Crore Ton कचरा खरीदता है। इनमें से कुछ तो E- Waste होता है और कुछ होता है plastic waste और इनमें वो plastic waste भी शामिल होता है जिन्हें आप recycle नही कर सकते। अब आप सभी के दिमाग में आ रहा होगा कि आखिरकार इतने कचरे का भारत करता क्या है। ये जानकर आप सभी को हैरानी होगी कि जिन सड़कों पर आप चलते हैं, अपनी गाड़ियां दौड़ाते हैं वो सड़के इसी waste material को recycle करके बनाई गई है। भारत के 12 राज्यों को जोड़ने वाली करीबन 1 लाख किलोमीटर लंबी सड़क का निर्माण इसी तकनीक से किया गया है।

अब इस काम में केवल भारत सरकार ही नही जुटी हुई, बल्की देश के कई नौजवान और लोग भी जुटे हुए हैं। इन्हीं में से एक हैं 12वीं कक्षा के छात्र आदित्य बांगर, जो प्लास्टिक वेस्ट को रिसाइकिल कर उससे फाइबर तैयार कर रहे हैं। आदित्य हर दिन करीबन 10 टन प्लास्टिक वेस्ट को रिसाइकिल करते हैं, जिससे प्लास्टिक वेस्ट की समस्या तो दूर हो ही रही है साथ ही इससे कमाई भी की जा रही है। 17 साल के आदित्य ने अपने इस कारोबार से एक साल में 1 करोड़ से ज्यादा का टर्नओवर हासिल किया है। इसके बाद एक शख्स है प्रोफेसर सतीश कुमार जिन्होंने प्लास्टिक वेस्ट से पेट्रोल ही बना डाला। पर्यावरण को सुरक्षित करने के लिए जिस तरह की तकनीक इन्होंने इस्तेमाल की है वो काबिले तारीफ है। हैदराबाद के रहने वाले 45 वर्षीय प्रोफेसर सतीश कुमार ने प्लास्टिक से पेट्रोल बनाने का कारनामा कर लोगों को हैरान कर दिया है, लेकिन असल में इससे भी ज्यादा हैरान कर देने वाली बात ये है कि सतीश कुमार उस प्लास्टिक वेस्ट को भी रिसाइकिल करते है जो की रिसाइकिल नही हो पाता। प्लास्टिक से पेट्रोल बनाने की प्रक्रिया को उन्होंने प्लास्टिक पायरोलीसिस नाम दिया है, जिसके लिए इन्होंने हाइड्रोक्सी प्राइवेट लिमिटेड नाम से एक कंपनी बनाई है। सतीश कुमार 500 किलो प्लास्टिक वेस्ट से 400 लीटर तक पेट्रोल का उत्पादन करते हैं।
अब वेस्ट मटीरियल को रिसाइकल करने से वो सभी चीज़ें बच जाती हैं जो की इन चीजों के उत्पादन में इस्तेमाल होती हैं। अब आप इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि जब आप एक टन पेपर को रिसाइकिल करते हैं तो इससे 17 पेड़ कटने से बच जाते हैं और ढाई बैरल ऑयल, 4000 किलोवॉट की बिजली, 4 क्यूबिक मीटर लैंडफिल, 30000 लीटर से ज्यादा पानी की बचत होती है।
अब जहां इन तकनीकों से फायदा होता है वहीं इनसे होने वाले नुकसान भी कुछ कम नही हैं। अब 25 देशों से आने वाले इस वेस्ट में कुछ ऐसा वेस्ट भी होता है जो रिसाइकिल नही किया जा सकता और इसे डंप करने के लिए ज्यादा लैंडफिल की जरूरत पड़ती है। जिन्हें नहीं मालूम उन्हें बता दें कि लैंडफिल वो जगह है जहां रिसाइकिल न होने वाले वेस्ट मटिरियल को डम्प किया जाता है।
जिस हिसाब से अन्य देशों से भारत में कचरा आ रहा है उसे देखते हुए ऐसा लगता है कि कही भारत सरकार को कचरे को डम्प करने के लिए एक अलग ही शहर न बनाना पड़े। वहीं ज्यादा मात्रा में कचरे को डम्प करने से भारत में प्रदूषण और प्रदूषण से होने वाली बिमारियों में भी इजाफा हो रहा है। तो क्या कुछ और ऐसे समाधानों का विकास नही होना चाहिए जिससे की डम्प किए जाने वाले वेस्ट को भी इस्तेमाल किया जा सके या फिर ऐसा वेस्ट भारत तक कम पहुंचे या फिर पहुंचे ही न जिसको रिसाइकिल नही किया जा सकता। इस मुद्दे पर आपके क्या विचार हैं, हमें कमेंट करके जरूर बताइएगा।