एक नेता ऐसे भी जो सिर्फ “पोस्टकार्ड” पोस्ट कर जीतते थे चुनाव

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devbhoomi

आज के समय में चुनाव प्रचार का सबसे बड़ा साधन बन गया है शोसल मीडिया प्लेट फॉर्म. लेकिन आप सोचिए जब संचार के दो प्रमुख माध्यम हुआ करते थे – टेलीफोन और पोस्ट ऑफिस. सड़कों का भी जाल नहीं बिछा हुआ था. तो चुनाव प्रचार करना कितना कठिन रहा होगा. लेकिन आप ने शायद ही कभी सुना हो या कहीं पढ़ा हो कि देश के इतिहास में एक ऐसा नेता भी थे जो पोस्ट कार्ड में संदेश भेजकर अपना विधानसभा चुनाव जीत जाते थे. ये थे उत्तर प्रदेशी की राजनीति में बड़ा नाम रहे डॉक्टर शिवानंद नौटियाल. डॉक्टर शिवानंद नौटियाल वैसे तो अविभाजित उत्तरप्रदेश में पौड़ी और कर्णप्रयाग सीट से चुनाव लड़ते थे.लेकिन उनकी राजनेताओं में अलग पहचान थी.वे बड़े शिक्षाविद और साहित्यकार थे. कानपुर विश्विद्यालय के वीसी तक रहे थे. अब बात करते हैं कि वे कैसे पोस्टकार्ड में संदेश भेजकर चुनाव जीत जाते थे.

दरअसल डॉक्टर शिवानंद नौटियाल का चुनाव लड़ने का अपना अनोखा तरिका था. जब भी चुनाव आते तो अपने विधानसभा क्षेत्र के हर गांव में और हर घर के लिए पोस्ट कार्ड पर संदेश लिखकर भेज देते थे. इस पोस्ट कार्ड पर घर के मुखिया के नाम पर होता था और गढ़वाली में संदेश लिखा होता था. जिस में लिखा होता था मैं शिवानंद नौटियाल चुनाव लड़ रहा हूं और ये मेरा चुनाव चिन्ह. बस इनते संदेश में वे चुनाव जीत जाते थे. ऐसे वे 1969 , 1974 में दो बार पौड़ी से विधायक रहे और उसके बाद 1977, 1980, 1989 में कर्णप्रयाग विधानसभा से विधायक रहे. यूपी में उच्च शिक्षा मंत्री और पर्वतीय विकास मंत्री भी रहे.आजादी के बाद गढ़वाल और कुमाऊं में नये स्कूल और कॉलेज खोलने का बड़ा श्रेय उन्हें जाता है. इसके साथ ही वे सफल साहित्यकार भी थे. दर्जनों किताबें उन्होंने लिखी. जिनको विश्वविद्यालय स्तर पर मान्यता भी मिली है.

लेकिन सवाल यह खड़ा होता है कि वे एक पोस्टकार्ड भेजकर चुनाव जीत कैसे जाते थे. इस पर विषय पर वरिष्ट पत्रकार और इतिहासकार योगेश धस्माणा जी ने बताया कि ये उनकी लंबी मेहनत का फल है. वे आजकल जैसे नेता नहीं थे. जब चुनाव नहीं होता था तो पैदल अपने क्षेत्र की गावों में घुमा करते थे जिससे उनका सभी गांव और वहां के लोगों से परिचय था. दूसरा वे किसी की भी शादी हो उसमें जरूर पहुंच जाते थे अगर नहीं पहुंच पाते तो किसी अपने परिचित को भेज देते थे. साथ ही वे किसी से मिले ने मिले लेकिन अपने विरोधियों से जरूर मिलते थे.

घस्माना जी बताते हैं कि एक बार वे पौड़ी शहर से गुजर रहे थे तभी उनका एक विरोधी सामने आ गया, वह डॉ शिवानंद नौटिलाय जी को देखकर बस के पीछे छिप गया. लेकिन नौटियाल जी कहां मानने वाले थे और बस के पीछे ही उससे मिलने पहुंच गये वह हैरान हो गया. कहा यह भी जाता है कि तब उनकी विधानसभा क्षेत्र से कोई भी व्यक्ति लखनऊ जाता था तो उसके रहने और खाने का पूरा इंतेजाम उनके विधायक आवास पर होता था. लखनऊ गढ़वाल से बहुत दूर है, कई बार विधायक से मिलने को लखनऊ जाना पड़ता था. कई लोग इनती दूर जाने के लिए असमर्थ होते थे. इसके लिए उन्होंने अपने कुछ प्रतिनिधियों को खाली साइन किये हुए लैटर पैड दिये होते थे, जिससे किसी को कोई परेशानी न हो. यही था डॉक्टर शिवानंद नौटियाल का प्रबंधन जो उन्हें चुनाव के समय फायदा पहुंचाता था.जो अमोमन आज के नेताओं में देखने को कम ही मिलता है. 1991 में वे डॉक्टर रमेश पोखरियाल निशंक से चुनाव हार गये थे और उसके बाद उन्होंने राजनीति से दूरियां बना ली थी.

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