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श्राद्ध और पिंडदान के लिए प्रसिद्ध उत्तराखंड की ये 3 जगहें, पूर्वजों को मिलता है सीधा मोक्ष

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श्राद्ध और पिंडदान
    आज हम आपको इस आर्टीकल 
    में उत्तराखंड के उन स्थानों के 
बारे में बताने जा रहे हैं
 जहां पिंडदान करने से मोक्ष
 की प्राप्ति होती है।

श्राद्ध और पिंडदान के लिए प्रसिद्ध उत्तराखंड की ये 3 जगहें

कुछ दिनों पहले हमने आपको गया में पिंडदान के महत्व के बारे में बताया था, आज हम आपको इस आर्टीकल में  उत्तराखंड के उन स्थानों के बारे में बताने जा रहे हैं जहां पिंडदान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

श्राद्ध और पिंडदान ब्रह्मकपाली में

ब्रह्मकपाली
ब्रह्मकपाली

श्राद्ध और पिंडदान

माना जाता है कि गया में श्राद्ध करने के बाद अंतिम श्राद्ध उत्तराखंड के बदरीकाश्रम क्षेत्र के ब्रह्मकपाली में किया जाता है। गया के बाद ये सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। ब्रह्मकपाली में किया जाने वाला पिंडदान आखिरी माना जाता है। इसके बाद किसी भी तरह का पिंडदान या श्राद्ध नहीं किया जाता है। माना जाता है कि जिन पितरों को गया में मुक्ति नहीं मिलती या अन्य किसी स्थान पर मुक्ति नहीं मिलती उनका यहां श्राद्ध करने से मुक्ति मिल जाती है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार पांडवों ने अपने परिजनों की आत्मा की शांति के लिए यहां पर पिंडदान किया था, कथाओं के अनुसार युद्ध के बाद पांडवों को गोत्र हत्या का पाप लगा था, पाप से मुक्ति पाने के लिए पांडवों ने स्वर्गारोहिणी जाते समय इस जगह पर अपने पितरों को तर्पण दिया था।

वहीं हर वर्ष पितृपक्ष में भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से लेकर अश्विन कृष्ण अमावस्या तक पितृपक्ष के दौरान यहां भीड़ लगी रहती है।

देवप्रयाग

देवप्रगाय

देवप्रगाय भागीरथी और अलकनंदा नदी का संगम स्थल है। यहां श्राद्ध पक्ष में पिंडदान का विशेष महत्व है। माना जाता है कि भगवान राम ने त्रेतायुग में ब्रह्रम हत्या के दोष से मुक्ति पाने के लिए इसी स्थान पर तप किया था। इसी के चलते यहां रघुनाथ मंदिर की स्थापना हुई। माना जाता है कि भगवान राम ने यहां अपने पिता दशरथ का पिंडदान किया था। आपको बता दें कि गंगा भागीरथी नदी को पितृ गंगा भी कहा जाता है। देश के अलग अलग हिस्सों से लोग यहां पिंडदान करने के लिए आते हैं।

हरिद्वार नारायणी शिला

हरिद्वार

हरिद्वार से करीब 4 से 5 किलोमीटर की दूरी पर नारायणी शिला मौजूद है। पितृपक्ष के दौरान यहां दूर दूर से लोग पिंडदान के लिए आते हैं।  मान्यता है कि इस नारायणी शिला पर पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

स्कंद पुराण के अनुसार एक बार गयासुर नारद की प्रेरणा पाकर नारायण से मिलने बद्रीनात पहुंचे लेकिन उन्हें वहां धाम का द्वार बंद मिला, इसपर गयासुर वहां रखे भगवान नारायण के कमलासन रुपी श्री विग्रह को उठाकर ले जाने लगे। इसी दौरान गयासुर ने श्रीनारायण को युद्ध के लिए ललकारा।

जब श्रीनारायण ने गदा से प्रहार किया तो गयासुर ने कमलासन आगे कर दिया। इससे कमलासन का एक भाग टूटकर वहीं गिरा, जिसे आज बद्रीनाथ में बह्रमा धाम कहा जाता है, इसका मध्य भाग टूटकर हरिद्वार व तीसरा भाग गया में गिरा इससे यह तीनों स्थल पवित्र माने जाते हैं। तो ये थी उत्तराखंड में श्राद्ध और पिंडदान के लिए प्रसिद्ध जगहें।

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