/ Jun 02, 2025

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सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण है देहरादून की लीची, जानिए क्यों है ये खास?

DEHRADUN LITCHI: देहरादून, उत्तराखंड की राजधानी, जहां एक ओर हिमालय की तलहटी की खूबसूरती लोगों को आकर्षित करती है, वहीं दूसरी ओर यहां उगाई जाने वाली स्वादिष्ट और सुगंधित लीची दुनियाभर में अपनी खास पहचान बना चुकी है। खासतौर पर “रोजसेंटेड लीची” नाम की किस्म, जो अपनी मिठास, रसीले गूदे और गुलाब जैसी खुशबू के लिए मशहूर है। देहरादून की यह लीची सिर्फ एक फल नहीं, बल्कि शहर की सांस्कृतिक और आर्थिक पहचान बन चुकी है। यह खबर आपको देहरादून की लीची के इतिहास, इसकी खासियतों, खेती की प्रक्रिया, चुनौतियों और इसकी अंतरराष्ट्रीय सफलता के बारे में बताएगी।

DEHRADUN LITCHI
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DEHRADUN LITCHI का इतिहास

लीची, जिसका वैज्ञानिक नाम लिची चाइनेंसिस है, मूल रूप से चीन से भारत लाई गई थी। देहरादून की जलवायु ने इस विदेशी फल को यहां की प्रमुख फसलों में शामिल कर दिया। 1890 के दशक में इसकी खेती की शुरुआत हुई थी, लेकिन 1940 के बाद यह धीरे-धीरे लोकप्रिय होने लगी। 1970 तक देहरादून में लीची का उत्पादन जोरों पर था और लगभग 6,500 हेक्टेयर भूमि पर इसकी खेती होती थी। विकासनगर, नारायणपुर, वसंत विहार, रायपुर, राजपुर रोड और डालनवाला जैसे इलाकों में इसके बाग मौजूद थे। आज यह क्षेत्र घटकर लगभग 3,070 हेक्टेयर रह गया है।

DEHRADUN LITCHI
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इसका स्वाद और खुशबू सबसे अलग

देहरादून की लीची की सबसे खास बात इसका स्वाद और खुशबू है। रोजसेंटेड लीची अपने मध्यम से बड़े आकार, गुलाबी से मैरून रंग के दानेदार छिलके और दूधिया सफेद रसीले गूदे के लिए पहचानी जाती है। इसका स्वाद खट्टा-मीठा होता है, लेकिन इसकी सबसे बड़ी खासियत है इसमें आने वाली गुलाब जैसी हल्की सुगंध, जो इसे बाकी लीचियों से अलग बनाती है। यह लीची मई से जून के बीच पकती है और इस समय इसकी बाजार में खूब मांग रहती है।

DEHRADUN LITCHI
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यह लीची न केवल स्वादिष्ट होती है, बल्कि पोषण से भरपूर भी है। इसमें विटामिन सी, मैग्नीशियम, कैल्शियम और कार्बोहाइड्रेट अच्छी मात्रा में होते हैं, जो इसे स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी बनाते हैं। देहरादून की जलवायु और मिट्टी लीची की खेती के लिए बेहद अनुकूल मानी जाती है। यहां की हल्की अम्लीय और बलुई दोमट मिट्टी, जिसका पीएच 5.5 से 7.5 के बीच होता है, लीची के लिए आदर्श है। जनवरी से फरवरी के बीच साफ मौसम और गर्म तापमान फूलों के लिए उपयुक्त होता है, जबकि अप्रैल-मई की नमी गूदे की गुणवत्ता बढ़ाने में मदद करती है।

DEHRADUN LITCHI
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अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी इसकी पहचान

देहरादून की लीची का नाम अब सिर्फ देश तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी इसकी पहचान बन चुकी है। 2024 में देहरादून के सर्किट हाउस स्थित राजकीय उद्यान से 8 क्विंटल लीची लंदन निर्यात की गई। यह उत्तराखंड के इतिहास में पहली बार हुआ जब देहरादून की लीची वैश्विक बाजार में पहुंची। इस निर्यात की प्रक्रिया में एपीडा यानी एग्रीकल्चरल एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी ने मदद की और इसके लिए फायटोसेनेटरी सर्टिफिकेट भी जारी किया गया। इस सफलता का श्रेय दून एग्रो इंटरनेशनल फर्म को जाता है, जिसने इस प्रयास को सफलतापूर्वक अंजाम दिया।

DEHRADUN LITCHI
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हालांकि इस प्रसिद्धि के बीच देहरादून की लीची की खेती कई चुनौतियों का सामना कर रही है। सबसे बड़ी समस्या है शहरीकरण, जिससे बागों की अंधाधुंध कटाई हुई है। वन और उद्यान विभाग द्वारा पेड़ों की कटाई की मंजूरी मिलने के बाद कई पुराने बाग नष्ट हो गए हैं। इसके अलावा नए बाग लगाने पर ध्यान नहीं दिया जा रहा, जिससे न केवल उत्पादन घटा है, बल्कि लीची की गुणवत्ता भी प्रभावित हो रही है। जलवायु परिवर्तन भी एक बड़ी चिंता बन चुका है, क्योंकि बारिश और तापमान में बदलाव फलों के रंग और स्वाद पर असर डाल रहे हैं।

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