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अर्थी को कंधा देने से पहले जान लीजिए ये बातें नहीं तो हो सकता है अपशकुन

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अर्थी को कंधा देने वाले हो जाएं सावधान!

देहरादून ब्यूरो। जो भी इंसान अतिंम यात्रा में शामिल होता है या फिर शव को कंधा देता है तो उस इंसान को कुछ सावधानियां बर्तनी होती हैं और अगर वो ऐसा नही करते हैं तो जिस अंतिम यात्रा में शामिल होना शुभ माना जाता है वो ही उनके दुख का कारण बन सकता है। आज हम आपको बताएंगे कि आपको अंतिम यात्रा के दौरान क्या क्या सावधानियां बर्तनी चाहिए। लेकिन इससे पहले आपको बताते हैं कि कैसे एक अंतिम यात्रा और शव यात्रा को देखने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। कहा जाता है कि जब भी कोई शव यात्रा या फिर अर्थी दिखे तो उसे दोनों हाथ जोड़कर, सिर झुका कर प्रणाम करना चाहिए और साथ ही शिव के नाम का जाप भी करना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार जो मृतात्मा संसार छोड़ कर जा रही होती है वह अभिवादन करने वाले इंसान के तन-मन से जुड़े सभी दुःख और क्लेश हर कर अपने साथ ले जाती है।

शव यात्रा 2

अब आपको बताते हैं कि एक अंतिम यात्रा में शामिल होने वाले इंसान और अर्थी को कंधा देने वाले इंसान को ऐसा करने के बाद क्या क्या सावधानियां बरतनी चाहिए। ऐसा माना जाता है कि जब किसी इंसान की मृत्यु होती है तो उसके दुश्मन भी उसकी अंतिम यात्रा में शामिल होते हैं क्योंकि मृत्यु के बाद वो सभी मन मुटाव उस मृत व्यक्ती के साथ ही चले जाते हैं। लेकिन आप में से कई लोग ऐसे होंगे जिन्हें इस बारे में पूरी जानकारी नही होगी कि अंतिम यात्रा में शामिल होने के बाद उन्हें क्या क्या सावधानियां बरतनी चाहिए।

हिंदू धर्म के अनुसार अगर कोई भी व्यक्ति किसी की अंतिम यात्रा में शामिल होता है और उसकी अर्धी को कंधा देता है तो उस इंसान को हर कदम चलने पर एक यज्ञ के समान पुण्य मिलता है और साथ ही उस इंसान को उसके सभी पापों से भी मुक्ती मिलती है। लेकिन ऐसा करते हुए आपको ये ध्यान में रखना होगा की जब आप शव को लेकर श्मशान घाट में प्रवेश करेगें तो वहां आपको किसी भी प्रकार का अनुचित व्यवहार या फिर किसी बात में हंसी मजाक नहीं करना चाहिए। अगर कोई भी व्यक्ति किसी भी तरह की अनुचित गतिविधियां करता है तो समय आने पर उसे भगवान को इसका जवाब देना होता है। साथ ही उसे ये भी समझना चाहिए कि उसे भी अंतिम समय में यहीं पर ही लाया जाएगा। 

इसके बाद अंतिम संस्कार में शामिल हो रहे सभी को ये भी ध्यान में रखना चाहिए कि अंतिम संस्कार होने के बाद बिना मुड़े किसी नदी या फिर तालाब में कपड़े पहने हुए ही स्नान करना चाहिए और मृत व्यक्ति के नाम पर जल अर्पण करना चाहिए और ऐसा करते हुए बिना कुछ बोले घर की ओर चल देना चाहिए। इसके साथ ही आपको ये भी ध्यान में रखना चाहिए जब आप अंतिम संस्कार से लौट रहे हों तो कभी भी चलो शब्द का इस्तमाल नही करना चाहिए क्योंकि जब तक मृत व्यक्ति जीवित था तब तक उसका आपसे सीधा संबध था और मरने के बाद वो व्यक्ति प्रेत योनि में प्रवेश कर चुका होता है जिसके कारण अगर आप लौटते वक्त चलो शब्द का इस्तेमाल करते हैं तो वो इंसान प्रेत रूप में आपके साथ भी चल सकता है। इसी वजह से श्मशान घाट से लौटते वक्त आपको चलो शब्द का इस्तमाल नही करना चाहिए। 

वहीं शास्त्रों के अनुसार एक नियम यह भी है कि जो व्यक्ति ब्रह्मचार्य का पालन करते हैं वो व्यक्ति अपने माता पिता और गुरू के आलावा किसी भी अन्य व्यक्ति को कंधा नहीं दे सकते हैं और ना ही किसी  व्यक्ति की शव यात्रा में शामिल हो सकते हैं। अगर वो व्यक्ति ऐसा करते हैं तो इससे उनका ब्रह्मचार्य खंडित हो जाता है। 

इसी तरह अंतिम संस्कार से लौटने के बाद सभी को नीम की दातून करनी चाहिए और फिर  लोहा,अग्नि ,जल ,पत्थर का स्पर्श करना चाहिए। दरअसल एक मनुष्य के भौतिक शरीर के अलावा पूजा से बने कई अन्य शरीर होते है जो श्मशान घाट के संपर्क में आने से दूषित हो जाते हैं और अगर आप श्मशान घाट से आने के बाद इन चीज़ों को स्पर्श करते हैं तो इनसे शरीर की अशुद्धियां दूर हो जाती है।

वहीं जो लोग शव यात्रा या फिर अतिंम संस्कार में शामिल होते हैं उन्हें एक दिन का सूतक मानना चाहिए..शव को छूने वाले इंसानों को 3 दिन का और अर्थी को कंधा देने वाले इंसान को 8 दिन का सूतक मानना चाहिए और इस सूतक के दौरान आप किसी भी मंदिर और धार्मिक कार्यों में शामिल नही हो सकते और साथ ही किसी भी साधू को दान भी नही दे सकते।

वहीं शास्त्रों में कहा गया है कि यदि हमारे घर के आस पास किसी व्यक्ति की मृत्यु हुई है तो हमें उस व्यक्ति की अंतिम यात्रा में भी जरूर जाना चाहिए और साथ ही जब तक उस इंसान की अर्थी न उठ जाए तब तक हमें कोई भी शुभ कार्य या फिर पूजा पाठ नही करना चाहिए। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि जहां पर शव पड़ा होता है उसके आसपास का इलाका नकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है जिसे सूतक कहा जाता है। इसी कारण कई लोग तो जब तक अर्थी नही उठ जाती तब तक अपने घरों का चूल्हा तक नही जलाते हैं।

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