/ Oct 10, 2024
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SUBODH SHAH: उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में पिछले कुछ वर्षों में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन देखने को मिला है। इस बदलाव का मुख्य कारण है युवाओं का शहरों से गांवों की ओर लौटना और खेती को अपने करियर के रूप में अपनाना। पहले जहां इन पहाड़ी क्षेत्रों के लोग रोजगार की तलाश में बड़े शहरों और विदेशों की ओर पलायन कर रहे थे, वहीं अब एक नई लहर देखी जा रही है, जिसमें युवा और अनुभवी पेशेवर अपने गांवों की ओर लौट रहे हैं और खेती में अपनी आजीविका तलाश रहे हैं।
सबोध शाह इस बदलाव की एक बेहतरीन मिसाल हैं। उन्होंने IIT रुड़की से केमिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की थी और उसके बाद 16 साल तक देश-विदेश में विभिन्न बहुराष्ट्रीय कंपनियों में काम किया। सुबोध ने अपने पेशेवर करियर में बहुत सारी उपलब्धियां हासिल कीं और आर्थिक रूप से भी सफल रहे, लेकिन फिर भी उन्हें संतुष्टि की कमी महसूस होती थी। विदेशों में रहते हुए उन्हें अपने गांव और अपनी मिट्टी से जुड़ने की तड़प महसूस होती थी। 2019 में, सुबोध ने एक साहसिक निर्णय लिया और अपने गृह राज्य उत्तराखंड लौटने का फैसला किया।
SUBODH SHAH ने देहरादून लौटने के बाद, खेती में अपना करियर बनाने का फैसला किया। उन्होंने IIT-BHU में कृषि की उन्नत तकनीकों और कृषि उद्यमिता पर एक कोर्स किया। इस कोर्स का मुख्य उद्देश्य राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY) के तहत किसानों को सशक्त बनाना और कृषि को एक लाभकारी व्यवसाय में बदलना था। इस योजना का उद्देश्य किसानों के प्रयासों को सशक्त बनाना, उनके जोखिम को कम करना और उन्हें कृषि-व्यवसाय में उद्यमशीलता की दिशा में मार्गदर्शन देना है। इस कोर्स के सफलतापूर्वक पूर्ण होने के बाद, केंद्र सरकार ने सुबोध को 8 लाख रुपये का सहायता अनुदान प्रदान किया।
सुबोध ने अपने खेत में राजमा और मसूर की दाल की खेती शुरू की, लेकिन उनका मुख्य ध्यान सेब की बागवानी पर था। 2021-22 में, उन्होंने टिहरी जिले में 5,000 से अधिक सेब के पेड़ लगाए और इसके साथ ही आधुनिक बागवानी तकनीकों को अपनाया। इसके साथ ही, पानी की कमी को दूर करने के लिए उन्होंने वर्षा जल संचयन के लिए एक बड़ा टैंक भी बनवाया। 2023 में, उनकी फसल से पहली बार सफलतापूर्वक सेब का उत्पादन हुआ, जिससे न केवल उनकी खुद की आय में वृद्धि हुई, बल्कि आसपास के अन्य किसानों को भी प्रेरणा मिली।
SUBODH SHAH ने किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए एक मोबाइल ऐप “कृषिसंधि” लॉन्च किया। इस ऐप के माध्यम से 200 से अधिक किसान और खुदरा विक्रेता जुड़ चुके हैं। इस ऐप का उद्देश्य किसानों को बिचौलियों के बिना अपने उत्पादों को सीधे बाजार में बेचने का अवसर प्रदान करना है, जिससे उनकी आमदनी में वृद्धि हो सके। यह ऐप किसानों को अपनी उपज की सही कीमत प्राप्त करने में मदद करता है और उन्हें अधिक बाजार अवसरों तक पहुंच प्रदान करता है।
सुबोध शाह ने “देवनिर्मित एग्रो सॉल्यूशन” और “फ्रेंजी फार्म” नामक दो स्टार्टअप भी शुरू किए हैं। इन स्टार्टअप्स का उद्देश्य महिलाओं को कृषि क्षेत्र में सशक्त बनाना और उत्तराखंड में तेजी से बढ़ते पलायन की समस्या को हल करना है। इन स्टार्टअप्स ने अब तक 100 से अधिक परिवारों को सेब की बागवानी की ओर प्रेरित किया है, जिससे उनकी आय में वृद्धि हुई है और पलायन की दर में कमी आई है। यह पहल न केवल आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी बदलाव का कारण बन रही है।
सुबोध शाह का अगला बड़ा उद्देश्य उत्तराखंड के सेबों को वैश्विक पहचान दिलाना है। वह उत्तराखंड के सेबों के लिए GI टैग (Geographical Indication tag) प्राप्त करने की दिशा में काम कर रहे हैं। GI टैग उत्तराखंड के सेबों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में मदद करेगा और इसके व्यापार में भी वृद्धि होगी। सुबोध का लक्ष्य है कि अगले पांच वर्षों में राज्य में 5 लाख से अधिक सेब के पेड़ लगाए जाएं, ताकि उत्तराखंड फिर से बागवानी के क्षेत्र में एक अग्रणी राज्य के रूप में स्थापित हो सके।
सुबोध शाह युवाओं को आधुनिक कृषि तकनीकों और बागवानी के कौशल में प्रशिक्षण देने की भी योजना बना रहे हैं। उनका मानना है कि अगर युवाओं को सही दिशा में प्रशिक्षित किया जाए, तो वे अपनी जड़ों से जुड़े रहते हुए आर्थिक रूप से सशक्त हो सकते हैं। इसके अलावा, सुबोध सामुदायिक बागवानी समूहों की स्थापना पर भी काम कर रहे हैं, जिससे स्थानीय किसानों को एकजुट होकर काम करने का अवसर मिल सके। यह पहल न केवल आर्थिक लाभ प्रदान करेगी, बल्कि सामुदायिक एकता और सहयोग को भी बढ़ावा देगी।
SUBODH SHAH की पहल ने केवल व्यक्तिगत स्तर पर ही नहीं, बल्कि सामुदायिक स्तर पर भी गहरा प्रभाव डाला है। उनके द्वारा शुरू की गई सेब की बागवानी ने स्थानीय किसानों को नए अवसरों से अवगत कराया और उन्हें आधुनिक खेती की तकनीकों के प्रति जागरूक किया। इससे पहले पहाड़ी किसान पारंपरिक फसलों पर निर्भर रहते थे, जिनकी आय सीमित थी और उन्हें शहरों की ओर पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ता था। अब, सेब की बागवानी के जरिए वे न केवल आर्थिक रूप से सशक्त हो रहे हैं, बल्कि उन्हें अपने गांवों में रहने का भी एक ठोस कारण मिल रहा है।
टिहरी और कुमाऊं क्षेत्रों में 100 से अधिक परिवारों ने सुबोध के अनुभव और ज्ञान से प्रेरणा लेकर सेब की बागवानी को अपनाया है। इससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है और पलायन की प्रवृत्ति में भी कमी आई है। यह पहल किसानों को सामूहिक रूप से एक नई दिशा में ले जा रही है, जहां वे अपने गांवों में रहते हुए आत्मनिर्भर हो सकते हैं। इससे यह साबित होता है कि सुबोध का दृष्टिकोण केवल एक व्यक्ति तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे समुदाय के लिए लाभकारी है।
उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में पलायन की समस्या हमेशा से एक बड़ी चिंता का विषय रही है। बेहतर रोजगार और शिक्षा के अवसरों की कमी के कारण लोग अपने गांव छोड़कर शहरों की ओर पलायन कर रहे थे। सुबोध शाह की पहल ने इस समस्या का एक महत्वपूर्ण समाधान प्रस्तुत किया है। उन्होंने दिखाया है कि अगर सही मार्गदर्शन और तकनीकों का उपयोग किया जाए, तो खेती भी एक सम्मानजनक और लाभदायक पेशा बन सकती है। इससे न केवल गांवों में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे, बल्कि पलायन की प्रवृत्ति भी कम होगी।
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