किसने नहीं बनने दिया N. D. Tiwari को प्रधानमंत्री

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ऐसे नेता की जो आजादी के समय छात्र संघ अध्यक्ष रहे और 1991 में वे प्रधानमंत्री की कुर्सी से एक कदम दूर रह गये और प्रधानमंत्री नहीं बन पाये | ये नेता पूरे देश में अकेले ऐसा नेता हैं जो दो राज्यों के मुख्यमंत्री रहे, लेकिन इस सब के बावजूद विवादों से हमेशा घिरे नजर आये और खूबसूरत महिलाओं के प्रति इनका लगाव तो जग जाहिर है.

हम बात कर रहे हैं केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री और राज्यपाल रहे नारायण दत्त तिवारी की. एनडी तिवारी प्रधानमंत्री बनने से कैसे चूके उससे पहले बात करते हैं उन के राजनीति कैरियर की | एन डी तिवारी का जन्म 18 अक्टूबर 1925 को नैनीताल जिले के बलूती गांव में हुआ था | पिता पूर्णानंद तिवारी वन विभाग में अधिकारी थे। नैनीताल, हल्द्वानी और बरेली से स्कूली शिक्षा प्राप्त करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए इलाहबाद चले गये, यहां ये आजादी के आंदोलन में कूद गये, लाठी खाई और जेल भी गये |

1947 में जब देश आजाद हुआ तब एनडी तिवारी इलाहबाद यूनिवर्सिटी के निवार्चित छात्रसंघ अध्यक्ष बने थे, यहीं से एनडी तिवारी ने राजनीति में अलग पहचान बनानी शुरू कर दी | एनडी तिवारी 1952 में नैनीताल सीट से पहले विधायक बने थे, तब ये प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से चुनाव लड़े थे, 1957 में फिर विधायक बने 1963 में एनडी तिवारी ने कांग्रेस ज्वाईन कर दी और वे उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री बने |

इस के साथ एनडी तिवारी राजनीति में अपना अलग मुकाम भी बनाते जा रहे थे, फिर ऐसा मौक भी आया जब उन्होंने उत्तर प्रदेश की कमान संभाली | एनडी तिवारी 1976, 1985 और 1988 में तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, भले ही तीनों बार वे अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाये | उत्तराखंड बनने के बाद वे 2002 से 2007 तक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे और उत्तराखंड में वे अकेले ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने अपने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया |

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