Home धार्मिक कथाएं इस मंदिर के दर्शन किए बिना अधूरी मानी जाती है कैलाश मानसरोवर...

इस मंदिर के दर्शन किए बिना अधूरी मानी जाती है कैलाश मानसरोवर यात्रा

0
Vasuki Nag Temple

Vasuki Nag Temple: कैसे हुआ यहां इस मंदिर का निर्माण?       

Vasuki Nag Temple: वो मंदिर जिसके दर्शन किए बिना कैलाश मानसरोवर की यात्रा मानी जाती है अधूरी। कैलाश मानसरोवर यात्रा पर निकलने से पहले इस मंदिर (Vasuki Nag Temple) में विराजमान नागों के राजा वासुकी नाग के दर्शन करना जरूरी होता है अन्यथा कैलाश मानसरोवर यात्रा से आपको जो फल मिल सकता था वो पूर्ण रूप से नहीं मिल पाता है।       

इस प्राचीन मंदिर का नाम है वासुकी नाग मंदिर (Vasuki Nag Temple) जो की जम्मू से करीबन 185 किलोमीटर की दूरी पर स्थित भद्रवाह में मौजूद है। क्योंकि यह मंदिर भद्रवाह में स्थित है इसलिए इसे भद्रकाशी के नाम से भी जाना जाता है। भद्रवाह डोडो जिले में मौजूद है जिसे मिनी कश्मीर के नाम से भी जाना जाता है।

वासुकी नाग मंदिर (Vasuki Nag Temple) के दर्शन करने के लिए देश के अलग अलग कोनों से लोग यहां आते हैं और नागों के राजा वासुकी के दर्शन करते हैं। 11वीं सदी में बने इस मंदिर पर लोगों की काफी आस्था है, ये मंदिर (Vasuki Nag Temple) मूर्तिकला और वास्तुकला का अद्भुत नमूना है जिसके बारे में ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर (Vasuki Nag Temple) के दर्शन किए बिना कैलाश मानसरोवर यात्रा अधूरी मानी जाती है।

इस मंदिर (Vasuki Nag Temple) के निर्माण को लेकर एक कहानी काफी प्रचलित है। इसके मुताबिक 1629 में बसोहली के राजा भूपत पाल द्वारा भद्रवाह पर अपना आधीपत्य स्थापित कर लिया गया था। एक समय की बात है राजा भूपत पाल भद्रवाह की ओर जा रहे थे और वहां जाने के लिए उन्होंने कैलाश कुंड का रास्ता लिया।

ये भी पढ़ें:
Ganesh Ji Vahan
भगवान गणेश का वाहन “मूषक” कभी हुआ करता था उनका शत्रु   

राजा भूपत पाल कैलाश कुंड को पार कर ही रहे थे कि तभी उनके आगे एक विशाल नाग आ गया और उस नाग ने राजा को जकड़ लिया। राजा ने नाग से काफी माफी मांगी जिसके बाद नाग ने राजा से उसके कान के छल्ले मांगे और साथ ही अपना मंदिर (Vasuki Nag Temple) बनवाने को भी कहा।

राजा ने अपने कान के छल्ले और मंदिर बनवाने पर अपनी मंजूरी दे दी जिसके बाद नागराज ने उन्हें छोड़ दिया। इसके बाद राजा ने मंदिर का कार्य भी शुरु करवा दिया। मंदिर का कार्य चल ही रहा था कि एक दिन राजा छत्रगलां की तरफ से वापिस लौट रहे थे।

इस दौरान राजा भूपत पाल को तेज प्यास लगी और वह बीच में एक झरने से पानी पीने के लिए रुके। अब जैसे ही राजा ने पानी पीने के लिए अपने हाथ आगे बढ़ाए वैसे ही उनके हाथ में वो छल्ला आ गया जो उन्होंने नाग देवता को दिया था।

इस छल्ले को देखने के बाद राजा ने उस छल्ले को वापिस कैलाश कुंड में चढ़ा दिया और फिर मंदिर के निर्माण कार्य को तेजी से पूरा करवाया गया। आपको बता दें कि जिस कुंड में राजा भूपत पाल द्वारा उस छल्ले को वापिस डाला गया था उसका नाम वासक छल्ला पड़ गया। वहीं जब मंदिर (Vasuki Nag Temple) का निर्माण कार्य पूरा हो गया तो इस मंदिर का नाम पड़ा वासुकि नाग मंदिर (Vasuki Nag Temple).

ये भी पढ़ें:
संगमरमर का वो मंदिर जो टिका है 1500 खंभों पर

आपको बता दें कि पुराणों में वासुकि को नागों का राजा माना गया है जो की ऋषि कश्यप व कद्रू के पुत्र थे। वासुकि ही वो नाग हैं जो भगवान शिव के गले में लिपटें हुए हैं। ये शेषनाग के छोटे भाई हैं जिन्हें शेषनाग द्वारा राज- पाठ छोड़ देने के बाद सर्पों का राजा बना दिया गया था।

धर्म ग्रंथों के मुताबिक वासुकि वही हैं जिन्हें समुद्र मंथन के दौरान नेती यानी की रस्सी के तौर पर इस्तेमाल किया गया था। इसके साथ ही त्रिपुरदाह के वक्त वासुकि शिव धनुष की डोर भी बने थे। आपको बता दें कि त्रिपुरदाह वो युद्ध था जिसमें भगवान शिव द्वारा एक ही बाण से राक्षसों के तीन पुरों का खात्मा किया था।                 

नागराज वासुकि को समर्पित इस मंदिर में वासुकि और राजा जमुट वाहन की प्रतिमा स्थापित है, ये प्रतिमा 87 डिग्री तक झुकी हुई है। इसी मंदिर (Vasuki Nag Temple) से कुछ दूरी पर स्थित है नागराज वासुकि का निवास स्थान, जिसे कैलाश कुंड और वासुकि कुंड के नाम से भी जाना जाता है। 

ये भी पढ़ें:
इसी स्थान पर हुआ था वीरभद्र महादेव का जन्म, जानें कैसे?

For latest news of Uttarakhand subscribe devbhominews.com

Exit mobile version