इस वीर ने माथे पर गोली लगने के बाद भी नष्ट की दुश्मन की 2 खंदके

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बात 1948 की है, भारत पाकिस्तान का युद्ध चल रहा था, रणभूमि में दोनों ओर से गोलियों की बौछार हो रही थी, कई वीर शहीद हो चुके थे, मगर भारत माता का एक लाल अभी भी युद्ध भूमि में अकेला ही डटा हुआ था, उसे पीठ दिखाकर भागना मंजूर न था, अकेले ही उसने कई दुश्मनों को मौत के घाट उतार दिया था। तभी अचानक दुश्मन  की ओर से एक गोली उस वीर के माथे पर आ लगी और बावजूद इसके उसने अपनी बची हुई हिम्मत को बटोरते हुए हथगोलों से दुश्मन की दो खंदके नष्ट कर डाली।

1965, 1971 और 1999 के युद्ध के बारे में तो आप सभी ने काफी कुछ सुना होगा मगर जब भारत और पाकिस्तान के अलग होने के बाद जो पाकिस्तान ने भारत के कश्मीर को पाने के लिए चुपके से आक्रमण किया उसके जवाब में हमारे सेना के जवानों ने भी मूह तोड़ जवाब दिया। ऑक्टूबर 1947 में पाकिस्तानियों द्वारा किए गया ये आक्रमण करीबन 7 महीनों तक चला। इस युद्ध में हमारे कई वीर भारत माता की रक्षा करते हुए शहीद हो गए और इन्हीं में से एक थे जिन्होंने युद्ध के दौरान कुछ ऐसा किया कि ये परमवीर चक्र पाने वाले दूसरे योद्धा बन गए।

 

आज बात कर रहे हैं पीरूसिंह शेखावत की, जिनका जन्म 20 मई 1918 को राजस्थान में झुंझुनू जिले के बेरी गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम था ठाकुर लालसिंह शेखावत। राजस्थान की भूमी से जन्मा ये वीर राजपूताना राईफल्स की छठी बटालियन की डी कम्पनी में हवलदार मेजर के पद पर भर्ती हुआ। इसके बाद जब 1947 में भारत पाकिस्तान एक दूसरे से अलग हुए और कबालियों ने कश्मीर के कुछ हिस्सों पर हमला बोल दिया तो कश्मीर नरेश ने अपनी रियासत को भारत में विलय करने की घोषणा कर दी। जिसके बाद भारत सरकार ने भी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपनी सेना को रणभूमि के लिए रवाना कर दिया।

इसी के तहत 5 नवम्बर 1947 को राजपूताना राईफल्स की छठी बटालियन की डी कम्पनी को टिथवाला के दक्षिण में तैनात किया गया। इस बटालियन ने श्रीनगर की रक्षा करने के बाद उरी सेक्टर से पाक कबायली हमलावरों को खदेड़ने में एक बड़ी भूमिका अदा की थी। जिसमें पीरूसिंह ने अद्भुत नेतृत्व करते हुए उरी और टिथवाल क्षेत्र की कई  प्रमुख पहाडियों पर अपना कब्जा कर लिया।

इसके बाद जुलाई 1948 के दूसरे हफते में दुश्मन की सक्रीयता टिथवाल क्षेत्र में बढ़ती जा रही थी, जिसको देखते हुए पीरूसिंह की बटालियन को आदेश मिला दारापाड़ी पहाड़ी की बन्नेवाल दारारिज से दुश्मन को हटाने का। इस स्थान तक पहुंचने के लिए ऊंचे ऊंचे पर्वतों को पार करके जाना था और रस्ता था बेहद संकीर्ण, जिसके कारण कुछ ही जवानों को यह कार्य सौंपा गया। 18 जुलाई की सुबह पीरूसिंह के नेतृत्व में छठी राज राईफल्स ने दुश्मन पर हमला बोल दिया। 18 जुलाई को छठी राज राईफल्स ने सुबह हमला किया और इसी दौरान दुश्मन ने पीरूसिंह की टोली पर दोनों तरफ गोलियां बरसाना शुरू कर दिया। जिसमें आधे से ज्यादा भारतीय सैनिक वीर गति को प्राप्त हो गए। संख्या बल में आधे से भी कम होने का बावजूद भी पीरूसिंह ने हार न मानी और लगातार अपने साथियों को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते रहे। इसी दौरान वे अकेले ही आगे बढ़ते चले गए और उस स्थान पर पहुंच गए जहां से मशीन गन से गोले दागे जा रहे थे। अब उन्होंने अपनी स्टेनगन से दुश्मन के सैनिकों को भून डाला जिसके बाद लगातार गोलियां बरसना भी बंद हो गया।