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सरदार वल्लभ भाई पटेल को प्रधानमंत्री बनने से रोकने के लिए महात्मा गांधी ने लगाई थी वीटो पावर !

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Sardar Vallabhbhai Patel Jayanti:  भारत के पहले उप प्रधानमंत्री, लौह पुरुष, भारत रत्न और भारतीय एकीकरण के शिल्पी सरदार वल्लभ भाई पटेल की 31 अक्टूबर को जयंती (Sardar Vallabhbhai Patel Jayanti) मनाई जा रही है। उनकी जयंती हर साल एकता दिवस के रूप में मनाई जाती है। आज उनकी जयंती पर हम आप को बता रहे हैं कि आखिर क्यों सरदार वल्लभ भाई पटेल देश के पहले प्रधानमंत्री नहीं बन पाये। जवाहर लाल नेहरू में ऐसा क्या था कि महात्मा गांधी ने उन्हें प्रधानमंत्री बनाने के लिए वीटो पावर लगानी पड़ी।

Sardar Vallabhbhai Patel Jayanti: नेहरू नहीं पटेल पहले मिले थे गांधी से

Sardar Vallabhbhai Patel Jayanti

भारत को आजाद हुए 75 साल पूरे हो गये हैं। इस 75 सालों में एक ऐसा सवाल हमेशा खड़ा होता रहा है कि आखिर क्या वजह रही कि सरदार वल्लभ भाई पटेल को नहीं जवाहर लाल नेहरू को देश का पहला प्रधानमंत्री बनाया गया। आखिर क्यों जवाहरलाल नेहरू को प्रधानमंत्री बनाने के लिए महात्मा गांधी को वीटो पावर लगानी पड़ी। जबकि देखा जाये तो महात्मा गांधी की नेहरू से पहले पटेल से मुलाकात हुई थी और नेहरू से पहले पटेल गांधी के करीबी बने थे। पटेल, महात्मा गांधी से मात्र 6 साल छोटे थे इसलिए दोनों के बीच में दोस्ताना संबंध थे। जबकि नेहरू सरदार पटेल से 15 साल छोटे थे।

Sardar Vallabhbhai Patel Jayanti: नेहरू और पटेल दोनों  एक ही लॉ कॉलेज से पढ़े

शैक्षिक योग्यता की बात करें तो सरदार पटेल भी लंदने के उसी लॉ कॉलेज मिडिल टेंपल से बैरिस्टर बने थे जहां से जवाहरलाल नेहरू बैरिस्टर बने थे। फिर ग्लैमरस नेहरू को देश की कमान सौंपी गई। आज हम आप को यही बताने जा रहे हैं कि कैसे नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बन गये और सबसे बड़े दावेदार सरदार पटेल को दूसरे नंबर पर रखा गया।

Sardar Vallabhbhai Patel Jayanti: अंग्रेजों ने बनाया था कैबिनेट मिशन का प्लान

1945 में हुए दूसरे विश्व युद्ध के बाद ब्रिटिश हुकूमत कमजोर हो गई थी। तब ब्रिटिश हुकूमत में इतनी ताकत नहीं रह गई थी कि वे ज्यादा समय तक भारत को गुलाम बनाये रखे। फिर यह माना जा रहा था कि भारत को भी जल्द आजादी मिल जायेगी। इस बीच 1946 में ब्रिटिश सरकार ने भारत में कैबिनेट मिशन बनाने का प्लान बनाया। इसमें फैसला लिया गया कि भारत में एक अंतरिम सरकार बनेगी, इस अंतरिम सरकार को बनाने के लिए एक एक्जीक्यूटिव काउंसिल बनानी थी। इस एग्जीक्यूटिव काउंसिल में अंग्रेज वॉयस रॉय को इसका अध्यक्ष होना था और उपाध्यक्ष कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष को बनना था।

Sardar Vallabhbhai Patel Jayanti:  तब कांग्रेस अध्यक्ष ने बनना था प्रधानमंत्री

तब यह माना जा रहा था कि आजादी के बाद कांग्रेस पार्टी का उपाध्यक्ष ही भारत का पहला प्रधानमंत्री बनेगा। लेकिन उस मौलाना अबुल कलाम आजाद कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष थे और वे 1940 से लगातार 6 सालों से इस पद पर तैनात थे। इस वक्त पर मौलाना अबुल कलाम आजाद भी अध्यक्ष पद छोड़ना नहीं चाहते थे। लेकिन महात्मा गांधी तो किसी और को ही कांग्रेस की कमान देना चाहते थे। इसलिए महात्मा गांधी ने मौलाना अबुल कलाम आजाद पर दबाव बनाया और उन्होंने ने भी 20 अप्रैल 1946 को कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देते हुए कहा कि अब वे अध्यक्ष नहीं बने रहना चाहते हैं।

Sardar Vallabhbhai Patel Jayanti: फिर शुरू हुई कांग्रेस अध्यक्ष की तलाश

फिर कांग्रेस में एक नये अध्यक्ष या फिर ऐसा कहें कि भारत के पहले प्रधानमंत्री को खोज शुरू हो गई। लेकिन इस बीच महात्मा गांधी ने भी साफ कर दिया था कि अगर इस बार उनसे राय मांगी गई तो वे जवाहर लाल नेहरू को पसंद करेंगे, इसके पीछे कई कारण हैं। अब कांग्रेस के बीच यह चर्चा शुरू हो गई कि गांधी तो नेहरू को प्रधानमंत्री बनाना चाहते हैं। 29 अप्रैल 1946 को कांग्रेस कार्य समिति की बैठक हुई जिसमें नया अध्यक्ष बनना था। इस बैठक में महात्मा गांधी, नेहरू, सरदार पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद, आचार्य कृपलानी, राजेंद्र प्रसाद, खान अब्दुल गफ्फार खान जैसे बड़े कांग्रेस बैठक में शामिल हुए।

Sardar Vallabhbhai Patel Jayanti: कांग्रेस प्रदेश कमेटियों ने पटेल का नाम प्रस्तावित किया था

कांग्रेस की परंपरा के मुताबिक प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव प्रांतीय कांग्रेस कमेटियां करती हैं। लेकिन यहां 15 प्रदेश कांग्रेस कमेटियों में से 12 ने एक नाम पर प्रस्तावित किया और वो नाम था सरदार वल्लभ भाई पटेल। बाकी तीन ने आचार्य जेबी कृपलानी और पट्टाभि सीतारमैया का नाम प्रस्तावित किया। इन कमेटियों ने कहीं भी जवाहरलाल नेहरू का नाम प्रस्तावित नहीं किया। लेकिन इस बैठक में सब जानते थे कि महात्मा गांधी के केवल नेहरू को अध्यक्ष बनना चाहते हैं। इसलिए पार्टी के महासचिव ने प्रस्ताव में जवाहरलाल नेहरू का नाम भी जोड़ दिया और कहा कि बापू की भावनाओं को देखते हुए मैं जवाहरलाल नेहरू का नाम प्रस्तावित कर रहा हूं। इस प्रस्ताव में नेहरू और पटेल समेत सभी नेताओं ने साइन कर दिये।

Sardar Vallabhbhai Patel Jayanti:  ऐसे दिखाया गांधी ने अपना नेहरू प्रेम

लेकिन गांधी तो कुछ और चाहते थे क्योंकि ऐसे में तो तब भी पटेल अध्यक्ष बन रहे थे। इस प्रस्ताव को महात्मा गांधी ने मंजूरी नहीं दी। तो फिर महासचिव जेबी कृपला ने एक और प्रस्ताव बनाया जिसमें नेहरू को निर्विरोध अध्यक्ष बनने के साथ पटेल के अध्यक्ष पद से नाम वापसी का जिक्र था। अब इस दूसरे प्रस्ताव में सब ने एक- एक कर के साइन करे लेकिन जब पटेल के पास पहुंचा तो उन्होंने ये प्रस्ताव पढ़ा और उस पर साइन करने से इनकार कर दिया। यहां गेंद महात्मा गांधी के पाले में चली गई।

महात्मा गांधी ने अपना वीटो पावर इस्तेमाल करते हुए सरदार पटेल को मना लिया और नेहरू कांग्रेस के अध्यक्ष बन गये और देश आजाद होते ही अंतरिम सरकार में वे पहले प्रधानमंत्री भी बन गये। यही परंपरा कांग्रेस में आज भी देखने को मिल रही है, कांग्रेस अध्यक्ष की सीट गांधी परिवार के इर्द-गिर्द ही घूमती है।

Sardar Vallabhbhai Patel Jayanti:  गांधी ने नेहरू को अध्यक्ष बनाने की यह वजह बताई थी

महात्मा गांधी के इस फैसले के पीछे कई विद्वानों का मत था कि सरदार पटेल महात्मा गांधी की किसी भी बात को नहीं टाल सकते थे। वहीं नेहरू कभी दूसरे नंबर पर नहीं रहना चाहते थे। तब महात्मा गांधी के पास पार्टी को बचाने के लिए यह जरूरी था कि नेहरू प्रधानमंत्री बने। जिसका जवाब बाद में खुद महात्मा गांधी ने दिया था कि जवाहरलाल नेहरू अकेला अंग्रेज है जो कभी दूसर ने नंबर के पद पर नहीं रहेगा। महात्मा गांधी को लगता था कि नेहरू अंतर्राष्ट्रीय मामलों भारत का प्रतिनिधित्व पटेल से अच्छा कर सकते हैं…सरकार अगर बैलगाड़ी है तो नेहरू और पटेल बैलगाड़ी के दो बैल, दोनों का होना बहुत जरूरी है।

Sardar Vallabhbhai Patel Jayanti अबुल कलाम आजाद को भी था ये पछतावा

मौलाना अबुल कलाम आजाद ने अपनी किताब इंडिया विन्स फ्रीडम में लिखा है कि मेरी राजनीति जिंदगी का सबसे गलत फैसला था, मैंने अपने किसी फैसले पर इतना पछतावा कभी नहीं किया जितना उस मुश्किल समय में अध्यक्ष पद को छोड़ने पर हुआ। उन्होंने इस किताब में यह भी लिखा है कि मेरी दूसरी गलती ये थी कि जब मैने अध्यक्ष पद छोड़ने का फैसला किया तब मैंने सरदार पटेल का समर्थन नहीं किया, बहुत सारे मुद्दों पर हम दोनों की की अलग राय थी लेकिन मुझे यकीन है कि सरदार पटेल वो गलतियां नहीं करते जो जवाहरलाल नेहरू ने की थी।

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