Home ये भी जानिए क्यों इस राजा ने सरेआम काटा अपनी ही रानी का सिर?

क्यों इस राजा ने सरेआम काटा अपनी ही रानी का सिर?

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Raja Puranmal: इस किले में आज भी मौजूद है बेशकीमती पारस पत्थर  

Raja Puranmal: हमारे देश में कई राजा हुए, इन राजाओं के कई राज़ इनके किले में आज भी दफ्न है। ये किले जहां एक ओर भारत की शान बढ़ाते हैं वहीं दूसरी ओर ये अपने अंदर कई रहस्यमयी कहानियां भी समेटे हुए हैं, जो किसी भी इंसान को सोचने पर मजबूर कर सकती हैं।

इन्हीं रहस्यों के बीच एक रहस्यमयी कहानी मध्य प्रदेश के भोपाल की भी है जहां के एक राजा (Raja Puranmal) ने खुद अपनी ही रानी का सिर उनके धड़ से अलग कर दिया था। ये कहानी है रायसन के किले की जहां के एक शासक (Raja Puranmal) द्वारा अपनी ही पत्नी को मौत के घाट उतार दिया गया था।

रायसेन के किले को 1200 ईस्वी में एक पहाड़ी की चोटी पर बनाया गया था। ये किला वास्तुकला का एक अद्भुत नमूना है जो कई सालों से वैसे का वैसा ही खड़ा है। ये पूरा किला बलुआ पत्थर से बना हुआ है जिसके चारों ओर चट्टानों की बड़ी बड़ी दीवारे हैं।     

इस अद्भुत किले पर कई राजाओं द्वारा शासन किया गया इन्हीं में से एक थे राजा पूरनमल (Raja Puranmal) जिन्होंने अपनी पत्नी का सिर कलम कर दिया था। दरअसल राजा पूरनमल (Raja Puranmal) के शासनकाल के समय पर शेरशाह सूरी द्वारा इस किले पर आक्रमण करने की योजना बनाई गई थी। शेरशाह ने इस किले को फतेह करने के लिए 4 महीनों तक इसकी घेराबंदी की लेकिन बावजूद इसके वो नहीं जीत पाया।         

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इसके बाद शेरशाह ने जीत पाने के लिए तांबे के सिक्कों को गलवाया और इनसे तोपें बनवाईं, जिसके बाद वो जीत गया। शेरशाह ने 1543 ईस्वी में इस किले को धोखे से जीता था। अब जैसे ही राजा पूरनमल (Raja Puranmal) को पता चला कि उनके साथ धोखा हुआ है तो उन्होंने (Raja Puranmal) अपनी पत्नी रानी रत्नावली को दुश्मनों के हाथों लगने से बचाने के लिए खुद उनका सिर काट दिया।

दरअसल इस किले पर कई राजाओं द्वारा आक्रमण किया गया था और इस आक्रमण के पीछे किसी रियासत को जीतने की लालसा कम थी और पारस पत्थर को हांसिल करने की ज्यादा। ऐसा कहा जाता है कि इस किले पर राज करने वाले एक राजा हुआ करते थे राजा राजसेन, जिनके पास पारस का एक पत्थर मौजूद था। ये पत्थर लोहे की किसी भी चीज को सोने में तबदील कर सकता था।

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इसी पारस के पत्थर के लिए इस किले पर कई आक्रमण किए गए और जब युद्ध में राजा राजसेन हार गए तो उन्होंने पारस के इस बेशकीमती पत्थर को किले के एक तालाब में फेंक दिया। इसके बाद किले पर राज करने वाले कई राजाओं द्वारा इस किले को खुदवाया गया ताकी उन्हें वो बेशकीमती पारस का पत्थर मिल जाए लेकिन सभी के हाथ असफलता ही लगी।

पारस के इस पत्थर की तलाश में आज भी कई लोग इस किले में रात गुजारते हैं और उस पत्थर को ढ़ूढते हैं, यहां तक की इस पत्थर को ढ़ूढ़ने के लिए कई लोग अपने साथ तांत्रिक भी लेकर आते हैं लेकिन किसी के भी हाथ आजतक कुछ न लग सका।

लोगों का यह भी कहना है कि इस किले में जो भी पारस पत्थर को ढूढ़ने आया उन सभी लोगों का मानसिक संतुलन ही बिगड़ गया। लोगों का मानना है कि ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इस बेशकीमती पत्थर की हिफाजत कई सालों से एक जिन्न कर रहा है।

वहीं बात करें पुरातत्व विभाग की तो उन्हें आज तक इस किले से ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिलै है जिससे ये साबित हो सके कि इस किले में पारस पत्थर मौजूद है, लेकिन फिर भी लोग इस किले में पारस पत्थर की तलाश में आते हैं और खाली हाथ ही लौटते हैं।

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