Home ये भी जानिए भारत की इस गुफा का क्यों नहीं है कोई अंत?

भारत की इस गुफा का क्यों नहीं है कोई अंत?

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Mysterious Caves: 250 साल पुरानी इस गुफा के रहस्य से नहीं उठ पाया है पर्दा

Mysterious Caves: यह दुनिया ऐसी कई रहस्यमयी जगहों से भरी है जिन पर विश्वास करना बेहद मुश्किल होता है, कई बार तो इन रहस्यमयी जगहों पर से पर्दा उठाने में वैज्ञानिक भी असफल साबित होते हैं, इन्हीं तरह की जगहों में शामिल है बिहार की एक गुफा जिसकी शुरुआत का तो हर किसी को मालूम है लेकिन उसके अंत का आज तक कोई भी पता नहीं लगा पाया है। इस गुफा (Mysterious Caves) के अंत को ढूंढने की कई बार कोशिश भी की गई लेकिन जिस किसी ने भी यह कोशिश की वह हमेशा नाकाम ही साबित हुआ।

यह गुफा (Mysterious Caves) बिहार के मुंगेर में स्थित है जिसके रहस्य पर से आज तक कोई भी पर्दा नहीं उठा पाया है। ये तो सभी को मालूम है कि अगर किसी गुफा (Mysterious Caves) में आपको जाना है तो उसके एक छोर से आप अंदर जाते हैं वहीं दूसरे छोर से आप बाहर आ सकते हैं, लेकिन बिहार की इस गुफा में ऐसा कुछ नहीं है, इस गुफा में अंदर जाने का रस्ता तो है लेकिन बाहर आने का दूसरा रास्ता नहीं है।

यानि कि अगर आप इस गुफा में जाएंगे तो जिस रास्ते से आप अंदर जाएंगे उसी रस्ते से आपको बाहर भी आना पड़ेगा। 250 साल पुरानी इस गुफा के अंत को आज तक कोई नहीं ढूढ़ पाया है।

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इस गुफा (Mysterious Caves) के इतिहास की बात की जाए तो ये भी बहुत रोचक है। आपको बता दें कि यह गुफा एक पार्क पर स्थित है जिसका नाम है श्री कृष्ण वाटिका, इसी वाटिका के पास मीर कासिम की यह गुफा स्थित है।

इतिहास की मानें तो मीर कासिम द्वारा इस गुफा को मुंगेर की गंगा नदी के कष्टहरणी घाट के किनारे बनवाया गया था। 1760 ईस्वी में इस गुप्त गुफा का निर्माण इसलिए करवाया गया था ताकि अंग्रेजों के हमले से बचा जा सके, यही कारण है कि इस गुफा का एक छोर आज भी सुरक्षित है और इस रहस्यमयी छोर को आज तक कोई भी नहीं ढूंढ पाया है।

वहीं स्थानीय लोगों का मानना है कि इस गुफा (Mysterious Caves) के दूसरे छोर का अंत मुंगेर के मुफस्सिल थाना क्षेत्र की पीर पहाड़ी के पास निकलता है, लेकिन आज तक इस बात की भी किसी के द्वारा कोई भी पुष्टि नहीं की गई है।

आपको बता दें कि ईस्ट इंडिया कंपनी के नवाब मीर कासिम 1760  में मुंगेर आए थे, इसके बाद उन्होंने ही बंगाल की राजधानी मुर्शिदाबाद को बिहार के मुंगेर में शामिल कर दिया था। वहीं कुछ इतिहासकारों के मुताबिक मीर कासिम मुंगेर में 1764 तक रहे और इस दौरान उन्होंने अपने आप को और इस शहर को सुरक्षित रखने के लिए पूरे शहर को किले में तबदील कर दिया और यही कारण है कि इस गुप्त गुफा (Mysterious Caves) के दूसरे छोर का आज तक कोई भी पता नहीं लगा पाया है।

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