Home धार्मिक कथाएं महर्षि भृगु ने विष्णु जी की छाती पर क्यों मारी थी लात?

महर्षि भृगु ने विष्णु जी की छाती पर क्यों मारी थी लात?

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देहरादून ब्यूरो। क्या आपको मालूम है कि शेषनाग पर विराजमान भगवान विष्णु जी को एक महर्षि ने लात मारी थी, वो भी उस समय जब भगवान विष्णु देवी लक्ष्मी के गोद में सिर रखकर आराम कर रहे थे। मगर ऐसा क्या हुआ कि महर्षि को ऐसा कदम उठाना पड़ा और महर्षि द्वारा भगवान विष्णु को लात मारने के बाद भगवान विष्णु ने महर्षि के साथ क्या किया।

ब्रह्मा विष्णु महेश 2

जिन महर्षि ने भगवान विष्णु की छाती में लात मारी थी उनका नाम है महर्षि भृगु जो कि ब्रह्मा जी के मानस पुत्र हैं। एक समय की बात है जब महर्षि भृगु त्रिदेवों से भेट करने निकले तो वह सबसे पहले अपने पिता ब्रह्माजी के पास गए। ब्रह्मा जी के समकक्ष पहुंचते ही महर्षि भृगु ने न तो अपने पिता को प्रणाम किया और न ही उनकी स्तूती की। अपने मानस पुत्र का ऐसा व्यवहार देख ब्रह्मा जी अत्यंत क्रोधित हुए, उनका चहरा गुस्से में एकदम लाल हो गया। मगर जिसने उनके साथ ये दुर्व्यवहार किया था वो उनका मानस पुत्र था जिसके कारण उन्होंने अपने गुस्से को दबा लिया और महर्षि भृगु को कुछ नही कहा।

इसके बाद महर्षि भृगु भगवान शिव से मिलने कैलाश पहुंचे और जैसे ही भगवान शिव ने महर्षि भृगु को आते देखा वैसे ही वह अपने आसन से खड़े हुए और उन्होंने महर्षि भृगु का आलिंगन करने के लिए अपनी बाहें फैला दी। मगर इसके जवाब में महर्षि भृगु ने कुछ ऐसा किया जिससे भगवान शिव को गुस्सा आना तय था। जब भगवान शिव महर्षि भृगु का आलिंगन करने हेतु खड़े हुए वैसे ही महर्षि भृगु ने उनका आलिंगन अस्वीकार करते हुए ये कहा कि “हे महादेव आप हमेशा धर्म के विरुध चलते हैं और दुष्टों को वरदान देते हैं जिससे संसार का अहित होता है इसी कारण मै आपका आलिंगन स्वीकार नही कर सकता”। ये सुनने के बाद भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो जाते हैं और अपना आपा खोते हुए वह अपना त्रिशूल उठाते हैं और जैसे ही भगवान शिव अपने त्रिशूल से महर्षि भृगु पर वार करने जाते हैं वैसे ही माता सती वहां पहुंच जाती हैं और भगवान शिव के क्रोध को जैसे तैसे शांत करती हैं।    

इसके बाद महर्षि भृगु भगवान विष्णु से भेंट स्वरूप वैकुण्ड जाते हैं जहां भगवान विष्णु देवी लक्ष्मी की गोद में सिर रखकर विश्राम कर रहे होते हैं और उसी समय महर्षि भृगु भगवान विष्णु की छाती पर लात मारते हैं। अब इस समय तक महर्षि भृगु ने सभी हदें पार कर दी थी जिसके बाद देवी लक्ष्मी भी अचम्बित हो उठी। छाती पर महर्षि भृगु की लात पड़ने के बाद भगवान विष्णु अपने स्थान से खड़े होते हैं महर्शि के चरण पकड़कर कहते हैं कि “हे ऋषि-मुनिवर आपके पैर में चोट तो नही आई, क्षमा कीजिएगा मुझे आपके आगमन का ज्ञात न था इसी कराणवश मैं आपका स्वागत न कर सका,आपके चरणों का स्पर्श पाकर मै धन्य हो गया।” भगवान विष्णु के मुख से ये प्रेम वचन सुनकर महर्षि भृगु का दिल पिघल गया और उनकी आखों से आंसू आने लगे। इन सभी घटनाओं के बाद महर्षि भृगु सभी ऋषि- मुनियों के पास लौटे और उन्हें सभी घटनाओं के बारे में विस्तार से बताया। मगर क्यों उन्होंने इस पूरे वाक्य का विवरण ऋषि मुनियों के समक्ष रखा।

असल में महर्षि भृगु ने ये सब एक कारण वश किया। वो कारण था जब सभी ऋषि-मुनि सरस्वती नदी के किनारे बैठकर इस बात पर विचार विमर्श कर रहे थे कि ब्रह्मा विष्णु और महेश में से सबसे श्रेष्ठ कौन हैं। कुछ ऋषि मुनियों ने ब्रह्मा जी का नाम लिया, कुछ ने विष्णु जी का, तो कुछ ने भगवान शिव का। काफी बहस होने के बाद सभी ऋषि मुनि किसी एक नाम पर न आ पाए। जिसके बाद उन्होनें त्रिदेवों की परीक्षा लेने का तय किया। अब त्रिदेवों की परीक्षा लेने के लिए चुना गया महर्षि भृगु को जो कि ब्रह्मा जी के मानस पुत्र है और साथ ही सप्तर्षिमंडल के एक ऋषि भी हैं। ये कार्य मिलने के बाद महर्षि भृगु ने त्रिदेवों की परीक्षा लेते हुए उनके साथ अभद्रता की और उन्हें क्रोधित करने का प्रयास किया। जिसके बाद इस परीक्षा में ब्रह्मा जी और भगवान शिव हार गए और जीत भगवान विष्णु की हुई। इसी परीक्षा के बाद से भगवान विष्णु को त्रिदेवों में सर्वश्रेष्ठ मानकर उनकी पूजा अर्चना की जाती है।

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