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कैसे पड़ा हर्षिल का नाम “हर्षिल”?

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Harsil Valley

Harsil Valley: इस जगह का नाम हर्षिल पड़ने के पीछे है ये रोचक कहानी

Harsil Valley: हिमालय की गोद में बसा स्वर्ग जिसमें एक अलग प्रकार की चुंबकीय शक्ती है, ये शक्ति आपको अपनी ओर खींचती जाएगी और आपके अंदर यहीं ठहर जाने की इच्छा जागृत करेगी। ये बेहद खूबसूरत जगह है उत्तराखंड की हर्षिल घाटी (Harsil Valley) जो स्विट्जरलैंड को पूर्ण रूप से टक्कर देती है। मगर क्या आपको मालूम है कि इस जन्नत जैसी जगह का नाम हर्षिल (Harsil Valley) कैसे पड़ा? नहीं पता तो आज आपको इस लेख के माध्यम से बताएंगे कि कैसे हर्षिल (Harsil Valley) का नाम पड़ा “हर्षिल”।

हर्षिल का नाम हर्षिल (Harsil Valley) पड़ने के पीछे दो बहुत ही दिलचस्प कहानियां हैं। इसमें से पहली कहानी के मुताबिक सतयुग में देवी जांलधरी और देवी भागीरथी के बीच अपनी महत्ता को लेकर बहस छिड़ गई थी। दोनों इस बात पर लड़ने लगीं कि कौन श्रेष्ठ है।

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अब भगवान श्री हरी दोनों के बीच हो रही इस बहस को देख रहे थे, ऐसे में उन्होंने दोनों के बीच हो रही बहस को शांत कराने का मन बनाया, जिसके बाद भगवान विष्णु ने पत्थर की एक शीला का रूप धारण किया और दोनों देवियों का गुस्सा उस पत्थर के अंदर समा गया।  

स्थानीय लोगों का ऐसा मानना है कि भगवान विष्णु ने शीला का रूप इसलिए धारण किया था ताकी वो दोनों देवियों का क्रोध अपने अंदर समा सके और दोनों के बीच चल रही बहस खत्म हो जाए। ऐसा करने के बाद जो निदियां अपनी उग्रता के कारण जानी जाती थीं वो उसके बाद से शांतिपूर्वक बहने लगीं। क्योंकि इस स्थान पर भगवान विष्णु शीला के रूप में विराजमान हुए इसी कारण इस जगह का नाम पड़ा “हरि-शीला” जिसको बाद में बदलकर हर्षिल (Harsil Valley) कर दिया गया।

इस जगह का नाम “हरि-शीला” क्यों पड़ा इसकी एक और कहानी काफी प्रचलित है। इस कहानी के मुताबिक एक राक्षस हुआ करता था जालंधर जिसे कई देवतागण मिलकर भी नहीं हरा पा रहे थे। इस राक्षस की पत्नी हुआ करती थी वृंदा जो की भगवान विष्णु की अनन्य भक्त थी।

अब जब सभी देवतागण मिलकर भी उस राक्षस को नहीं हरा पा रहे थे तो वह जाते हैं भगवान शिव के पास जो सभी देवगणों को बताते हैं कि इसमें उनकी मदद भगवान विष्णु ही कर पाएंगे, जिसके बाद सभी देवगण भगवान विष्णु की शरण में पहुंच जाते हैं और उनसे मदद मांगने लगते हैं।

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भगवान विष्णु जालंधर का वध करने के लिए उसका रूप धारण करते हैं और उसकी पत्नी वृंदा का सतित्व भंग कर देते हैं। वृंदा का सतित्व भंग होने के बाद जालंधर की मृत्यु हो जाती है, दरअसल जालंधर को तबतक कोई नहीं मार सकता था जबतक उसकी पत्नी का सतित्व भंग न हो जाए और उसकी पत्नी का सतित्व भंग होते ही जालंधर पर वार कर दिया गया जिसके बाद उसकी मृत्यु हो गई।

जालंधर की मृत्यु होते ही श्री हरि अपने असली रूप में आ जाते हैं और अपने पति की जगह किसी अन्य मर्द को देख वृंदा अत्यंत दुखी होती है कि उसकी वजह से उसके पति की मृत्यु हो गई, जिसके बाद क्रोधित वृंदा भगवान विष्णु को श्राप देती है कि वो पत्थर बन जाए यानी की पाषाण बन जाएं।

अब कुछ क्षण पश्चात जब वृंदा को इस बात का एहसास हुआ कि उसने तो अपने ही आराध्य को श्राप दे दिया तो उन्हें अत्यंत दुख होता है जिसके बाद भगवान विष्णु ने उनके आगे शादी का प्रस्ताव रखा और उन्हें अपनी चौथी पत्नी बनाने का निर्णय लिया।

अपने अराध्या की पत्नी बनने के लिए वृंदा भी राजी हो जाती हैं, जिसके बाद भगवान विष्णु वृंदा से शादी करते हैं और उन्हें तुलसी के रूप में स्वीकार कर लेते हैं। इसके साथ ही भगवान विष्णु ने ये भी कहा कि जब जब मेरी पूजा शालीग्राम के रूप में होगी तब तब वह तुलसी के बिना अधूरी मानी जाएगी। इसी कराण इस जगह का नाम “हरि-शीला” पड़ा जिसे आज सभी हर्षिल (Harsil Valley) के नाम से जानते हैं।

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