आयुर्वेद विवि में हुए भ्रष्टाचार की होगी विजिलेंस जांच, हरक के सिर पर भी लटकी तलवार….

0
302

देहरादून, ब्यूरो :  2022 विधानसभा चुनाव के बाद से राजनीतिक गलियारों से गुमनाम हुए पूर्व कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत की मुश्किलें बढ़ सकती हैं….क्योंकि अब उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय में हुए भ्रष्टाचार, गलत भर्तियों और अनियमितताओं की विजिलेंस जांच हो जा रही है। बुधवार को ही शासन ने इसे लेकर आदेश जारी कर दिए हैं। आपको बता दें कि पूर्व में शासन ने अपर सचिव कार्मिक की अध्यक्षता में चार सदस्यीय जांच समिति बनाई थी। उस जांच समिति में अपर सचिव वित्त अमिता जोशी, संयुक्त निदेशक आयुर्वेदिक और यूनानी कृष्ण सिंह नपलच्याल और ऑडिट अधिकारी रजत मेहरा भी सदस्य थे। हालांकी अभी भी यह जांच समिति अपनी जांच कर रही है। लेकिन अब शासन ने आयुर्वेद विश्वविद्यालय के सभी मामलों की विजिलेंस जांच के आदेश जारी कर दिए हैं। जिसकी पुष्टी सचिव कार्मिक शैलेश बगोली ने की है।

harak

दरसअल आयुर्वेद विश्वविद्यालय पिछले कई सालों से वित्तीय अनियमितताओं, भ्रष्टाचार और नियुक्तियों में हुए फर्जीवाड़े को लेकर चर्चाओं में है। जहां पिछले साल अगस्त में ही अपर सचिव राजेंद्र सिंह ने विवि के कुलसचिव से सभी आरोपों की जांच रिपोर्ट मांगी थी। और फिर अप्रैल महीने में अपर सचिव राजेंद्र सिंह ने अपर सचिव कार्मिक एसएस वल्दिया की अध्यक्षता में चार सदस्यीय जांच समिति गठित की थी । विवि पर योग अनुदेशकों के पदों पर जारी रोस्टर को बदलने, माइक्रोबायोलॉजिस्ट के पदों पर भर्ती में नियमों का अनुपालन न करने, बायोमेडिकल संकाय व संस्कृत में असिस्टेंट प्रोफेसर एवं पंचकर्म सहायक के पदों पर विज्ञप्ति प्रकाशित करने और फिर रद्द करने, विवि में पद न होते हुए भी संस्कृत शिक्षकों को प्रमोशन एवं एसीपी का भुगतान करने, बिना शासन की अनुमति बार-बार विवि की ओर से विभिन्न पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन निकालने और रोक लगाने, विभिन्न पदों पर भर्ती के लिए विवि की ओर से गठित समितियों के गठन की विस्तृत सूचना शासन को न देने के साथ ही पीआरडी के माध्यम से 60 से अधिक युवाओं को भर्ती करने का आरोप है।

माना जा रहा है कि आयुर्वेद विश्वविद्यालय में होने वाली विजिलेंस जांच विभाग के मंत्री रहे डॉ. हरक सिंह रावत तक की मुश्किलें बढ़ा सकती है। क्योंकि उनके कार्यकाल में विभाग में तमाम नियुक्तियां हुंई हैं। वहीं विजिलेंस जांच के लपेटे में 2017 से लेकर 2022 के बीच कार्यरत रहे कई बड़े अधिकारी भी आ सकते हैं।