Home धार्मिक कथाएं भगवान गणेश का वाहन “मूषक” कभी हुआ करता था उनका शत्रु   

भगवान गणेश का वाहन “मूषक” कभी हुआ करता था उनका शत्रु   

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Ganesh Ji Vahan

Ganesh Ji Vahan: क्यों हुआ था गणेश जी और उनके वाहन के बीच युद्ध?

Ganesh Ji Vahan: क्या आपको मालूम है कि गणेश जी और उनका वाहन मूषक (Ganesh Ji Vahan) पहले दुश्मन हुआ करते थे? दोनों के बीच भयंकर युद्ध हुआ और आखिर में गणेश जी ने मूषक को अपना वाहन (Ganesh Ji Vahan) ही बना डाला। आखिर कैसे बना मूषक, गणेश जी का वाहन?

इस बात का वर्णन गणेश पुराण में भी किया गया है। गणेश पुराण के मुताबिक मूषक के गणेश जी का वाहन (Ganesh Ji Vahan) बनने को लेकर 2 कहानियां काफी प्रचलित। इनमें से पहली कहानी के मुताबिक एक गजमुखासुर नाम का राक्षस हुआ करता था।

गजमुखासुर चाहता था कि वो पूरे ब्रह्माण में सबसे अधिक बलवान और धनवान हो, इसके लिए वह रात दिन भगवान शिव की अराधना करता रहता। इसके बाद एक दिन गजमुखासुर अपना राज्य छोड़ जंगल में चला गया और वहां जाकर भगवान शिव की अराधना में लीन हो गया।

गजमुखासुर की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे दर्शन दिए और मनचाहा वरदान मांगने को कहा, जिसके बाद गजमुखासुर ने दैविक शक्तियां मांगी और वरदान मांगा कि कोई भी शस्त्र उसका कुछ न बिगाड़ पाए। भगवान शिव ने गजमुखासुर को वरदान दिया जिसके बाद गजमुखासुर अपने आगे किसी को भी कुछ न समझने लगा।

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पृथ्वी पर तो गजमुखासुर आतंक मचा ही रहा था साथ ही साथ देवी देवताओं पर भी अत्याचार कर रहा था। इस समय तक हर कोई गजमुखासुर के आतंक से परेशान था मगर अबतक गजमुखासुर ने भगवान शिव, विष्णु जी, ब्रह्मा जी और गणेश जी को कुछ नहीं किया था।

दरअसल गजमुखासुर चाहता था कि सभी देवी देवता उसकी पूजा करें और उसके आगे शीश झुकाए, इसी कारण वो आए दिन देवी देवताओं पर अत्याचार करता। गजमुखासुर के आंतक से परेशान होकर सभी देवी देवता ब्रह्मा, विष्णु और महेश की शरण में पहुंचे और उनसे गजमुखासुर के आंतक से मुक्ति दिलाने का आग्रह किया।

सभी देवी देवताओं के आग्रह करने पर भगवान शिव ने गणेश जी को गजमुखासुर को सबक सिखाने के लिए भेजा, जिसके बाद गणेश जी और गजमुखासुर के बीच युद्ध हुआ। इस युद्ध में गणेश जी का एक दांत टूट गया था जिसके बाद गुस्से में आगबबूला गणेश जी ने अपने टूटे हुए दांत से ही गजमुखासुर पर वार कर डाला।

क्रोधित गणेश जी को देख गजमुखासुर घबराकर चूहा बन गया और इधर से उधर भागने लगा, मगर गणेश जी ने उसे धर दबोचा जिसके बाद मूषक रूप धारण किए गजमुखासुर ने भगवान गणेश ने क्षमा याचना की, जिसके बाद गणेश जी ने गजमुखासुर को मूषक रूप में ही अपना वाहन (Ganesh Ji Vahan) स्वीकार कर लिया।         

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वहीं गणेश पुराण में एक और कहानी का भी वर्णन किया गया है। इस कहानी के अनुसार इंद्रलोक में क्रौंच नाम का एक गंधर्व हुआ करता था। एक दिन क्रौंच इंद्रलोक की सभी अप्सराओं के साथ हंसी मजाक करने में व्यस्त था कि तभी इंद्र देव की नजर क्रौंच पर पड़ गई।

इस बात से नाराज इंद्र देव ने क्रौंच को चूहा (Ganesh Ji Vahan) बनने का श्राप दे दिया। चूहा बनने के बाद क्रौंच एक बलवान मूषक बन गया और फिर ऋषि पराशर के आश्रम में जाकर उसने उत्पाद मचाना शुरु कर दिया। कभी वो मिट्टी के बर्तन तोड़ दिया करता, तो कभी सारा अनाज खा लिया करता, कभी वाटिका की सभी डालिया उखाड़ दिया करता तो कभी ऋषि मुनियों के वस्त्र और ग्रंथ कुतर दिया करता।  

ऋषि परासर इस चूहे (Ganesh Ji Vahan) के आतंक से बेहद परेशान थे जिसके बाद वह मदद के लिए गणेश जी के पास आए और उनसे मदद मांगी। गणेश जी ने ऋषि मुनी की मदद के लिए और मूषक (Ganesh Ji Vahan) को सबक सिखाने के लिए अपना तेजस्वी पाश फेंका, ये पाश चूहे का पीछा करते हुए पाताल लोक तक गया और आखिर में उसे कंठ से बांधकर गणेश जी के सामने ले आया।

पाश द्वारा पकड़े जाने के कारण मूषक बेहोश हो गया और होश में आते ही उसने गणेश जी का नाम जपना शुरु कर दिया और अपने प्राणों की भीख मांगना भी शुरु कर दिया। मूषक को यू इस कदर अपने प्राणों की भीख मांगते देख गणेश जी को उस पर दया आ गई और उससे कहा कि तूने ब्राह्मणों को काफी परेशान किया है और मेरा कर्तव्य है दुष्टों को उनके कर्मों की सजा देना, मगर शरणागत की मदद और रक्षा करना भी मेरा धर्म है, तो तुम्हें मैं एक और मौका देता हूं, जो चाहे वरदान मांग लो।

अपने प्राणों की रक्षा की बात सुनकर मूषक में अहंकार आ गया, उसने गणेश जी से कहा कि मुझे कुछ नहीं चाहिए, अगर आपको कुछ चाहिए तो आप मुझसे वर याचना कर सकते हैं। मूषक के मुख से ये बात सुनकर गणेश जी मन ही मन मुस्कराए और उससे कहा कि “अगर तेरा ये वचन सत्य है तो तू अभी के अभी मेरा वाहन (Ganesh Ji Vahan) बन जा”।

इस पर मूषक ने तथास्तु कहा और गणेश जी बिना एक क्षण गवाएं मूषक के ऊपर बैठ (Ganesh Ji Vahan) गए। अब जैसे ही गणेश जी मूषक के ऊपर बैठे वैसे ही मूषक के प्राणों पर संकट के काले बादल मंडराने लगे। मूषक भारी भरकम गणेश जी का भार नहीं उठा पा रहा था जिसके बाद उसने गणेश जी से अपना भार उसके वहन (Ganesh Ji Vahan) के योग्य करने की प्रार्थना की और ऐसे मूषक गणेश जी का वाहन (Ganesh Ji Vahan) बन गया और इस प्रकार उसका भी अहंकार चूर चूर हो गया।    

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