एक जांबाज जो छुड़ाता रहा PAK सेना के छक्के, Pakistan के हमले ऐसे करता रहा नाकाम

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भारत पाकिस्तान का वो युद्ध, युद्धभूमि में गोलियों का शोर, चारों ओर उड़ती हुई धूल और लाल रंग से रंगी धरती..कुछ ऐसा ही दिल दहला देने वाला था वो मंजर जब दुश्मन के चुंगुल में फसा था हमारा एक वीर जवान..और दूसरी ओर दुश्मनों की गोलियों का जवाब दे रहे हमारे सैनिक..वहां एक योद्धा ऐसा भी था जो दुश्मन के खेमे में फंसे अपने साथी को सही सलाहमत वापिस ले आया।

15 सितंबर 1915 को पंजाब के बरनाल में जन्में करम सिंह एक किसान परिवार से तालुक रखते थे। इनके पिता का नाम उत्तम सिंह था। अपने सैन्य जीवन की शुरूआत इन्होंने 15 सितंबर 1941 को सिख रेजीमेंट की पहली बटालियन में भीर्ती होकर की। इसके बाद इन्होंने द्वितीय विश्व के दौरान बर्मा अभियान में अपना अदम्य साहस दिखाते हुए मिलिट्री मेडल अपने नाम किया।

1948 के भारत पाकिस्तान युद्ध में हमारे भारतीय वीरों ने टिथवाल क्षेत्र में पाकिस्तानियों को ऐसी शिकस्त दी कि दुश्मन डर के मारे अपने हथियार किशनगंगा नदी में डाल कर भाग निकले। अब इस हार के बाद पाकिस्तान बौखलाया हुआ था, जिसके बाद उसने अपनी हार का बदला लेने के लिए फिरसे भारत के खिलाफ साजिश के तार बुनना शुरू कर दिया। और इस बार भारी संख्या के साथ टिथवाल क्षेत्र पर आक्रमण बोल दिया, जिसके बाद भारतीय सेना अपनी जगह बदलते हुए टिथवाल रिज पहुंच गए और सही मौका मिलते ही भारतीय जवानों ने दुश्मन सेना पर हमला बोल दिया और एक बार फिरसे दुश्मन के हाथों असफलता ही हाथ लगी।

एक बार फिर हारने के बाद इस बार पाकिस्तांन ने 13 अक्टूवबर 1948 को अपनी पूरी बिग्रेड को भारत पर हमला बोलने के लिए लगा दिया। दुश्मन की साजिश टिथवाल के दक्षिण में स्थित रीछमार गली और टिथवाल के पूर्व नस्तचूर दर्रे पर अपना कब्जा जमाने की थी। 13 अक्टूाबर की रात हुए इस हमले में भारत और पाकिस्तानी सेनाओं के बीच रीछमार गली में भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध में लांस नायक करम सिंह एक सिख यूनिट का नेतृत्वे कर रहे थे और दुश्मन की ओर से लगातार हो रही गोलाबारी में वह काफी जख्मीत हो गए थे। मगर बावजूद इसके करम सिंह के साहस में कोई कमी नहीं आई।

पूरी जानकारी के लिये ऊपर दिये गये वीडियो पर क्लिक करें

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