कानूनी दाँवपेंच में माहिर डिवोर्स एडवोकेट की होती है ये विशेषताएं

DIVORCE ADVOCATE

DIVORCE ADVOCATE: विवाह जीवन का एक महत्वपूर्ण अध्याय होता है लेकिन कई बार परिस्थितियां ऐसी बन जाती हैं कि विवाह को तोड़ना ही एकमात्र विकल्प लगता है। ऐसे में एक DIVORCE LAWYER की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। एक डिवोर्स लॉयर एक कानूनी विशेषज्ञ होता है जो विवाह विच्छेद की प्रक्रिया में एक व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। इस लेख में हम डिवोर्स लॉयर की भूमिका, एक अच्छे DIVORCE LAWYER की विशेषताएं और डिवोर्स की प्रक्रिया के बारे में विस्तार से जानेंगे।

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DIVORCE ADVOCATE: डिवोर्स लॉयर की भूमिका

एक DIVORCE LAWYER की भूमिका काफी व्यापक होती है। वह अपने क्लाइंट को कानूनी सलाह देता है, कानूनी दस्तावेज तैयार करता है, कोर्ट में पेश होता है और क्लाइंट के हितों की रक्षा करता है। डिवोर्स लॉयर अपने क्लाइंट को विवाह विच्छेद से संबंधित सभी कानूनी पहलुओं के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करता है। डिवोर्स लॉयर डिवोर्स के लिए आवश्यक सभी कानूनी दस्तावेज तैयार करता है।

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DIVORCE LAWYER कोर्ट में अपने क्लाइंट का प्रतिनिधित्व करता है और उनकी ओर से दलीलें पेश करता है। यदि दंपति के बच्चे हैं तो डिवोर्स लॉयर बच्चों की कस्टडी और पालन-पोषण के मुद्दों पर भी क्लाइंट का प्रतिनिधित्व करता है। डिवोर्स लॉयर दंपति की संपत्ति के बंटवारे से संबंधित मुद्दों पर भी क्लाइंट का प्रतिनिधित्व करता है।  यदि आवश्यक हो तो डिवोर्स लॉयर गुजारा भत्ते के लिए आवेदन करता है और क्लाइंट को गुजारा भत्ता दिलाने में मदद करता है।

DIVORCE ADVOCATE: एक अच्छे डिवोर्स लॉयर की विशेषताएं

DIVORCE LAWYER के पास विवाह विच्छेद के मामलों में पर्याप्त अनुभव होना चाहिए। DIVORCE LAWYER को विवाह विच्छेद से संबंधित सभी कानूनों और नियमों का गहन ज्ञान होना चाहिए। एक अच्छे डिवोर्स लॉयर में मजबूत वकालत कौशल, बातचीत कौशल और समस्या समाधान कौशल होते हैं। एक अच्छा डिवोर्स लॉयर अपने क्लाइंट के प्रति सहानुभूति रखता है और उनकी भावनाओं को समझता है। एक अच्छा डिवोर्स लॉयर अपने क्लाइंट के प्रति विश्वासपात्र होता है।

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डिवोर्स की प्रक्रिया

डिवोर्स की प्रक्रिया अलग-अलग देशों और राज्यों में अलग-अलग हो सकती है। हालांकि, सामान्य तौर पर डिवोर्स की प्रक्रिया में सबसे पहले डिवोर्स के लिए आवेदन दायर किया जाता है। इसके बाद दूसरे पक्ष को नोटिस दिया जाता है।  जब दूसरा पक्ष अपना जवाब दाखिल करता है तो केस शुरू होता है। यदि संभव हो तो मीडिएशन के माध्यम से विवाद का समाधान किया जाता है। यदि मीडिएशन विफल हो जाता है तो मामला कोर्ट में जाता है। कोर्ट अपना निर्णय सुनाता है। यदि कोई पक्ष निर्णय से असंतुष्ट है तो वह अपील कर सकता है।

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